भावनायें या वासनायें आने का साहस तक नहीं कर सकती वह यदि अचेतन मेघ को दूत बनावे और उसके द्वारा अपनी प्रेयसी के पास अपना सन्देश भेजे तो आश्चर्य ही क्या है? जो मत्त है और जो संसार की प्रत्येक वस्तु में अपने प्रेमपात्र को देख रहा है उसे यदि जड़-चेतन का भेद मालूम रहे तो फिर उसके प्रेम की उच्चता कैसे स्थिर रह सकी है? वह प्रेम ही क्या जो इस तरह के भेद-भाव को दूर न कर दे। कीट-योनि में उत्पन्न पतिङ्गों के लिए दीप-शिखा की ज्वाला अपने प्राकृतिक दाहक गुण से रहित मालूम होती है। महाप्रेमी यक्ष को यदि मेघ की अचेतना का
ख़याल न रहे तो इसमें कुछ भी अस्वाभाविकता नहीं। फिर, क्या
यक्ष यह न जानता था कि मेघ क्या चीज़ है? वह मेघदूत के
आरम्भ ही में कहता है---
"घाम धूम नीर औ समीर मिले पाई देह
ऐसो घन कैसे दूत-काज भुगतावेगी-
नेह को संदेसो हाथ चातुर पठैवे जोग
चादर कहा जी ताहि कैसे के सुनावेगो।
बाढ़ी उत्कण्ठा जक्ष बुद्धि बिसरानी सब
बाही सो निहाखो जानि काज कर आवेगो-
कामातुर होत हैं सदाई मतिहीन तिन्हें
चेत औ अचेत माँह भेद कहाँ पावेगो"।।
उस समय यक्ष को केवल अपनी प्रेयसी का ख़याल था। वहीं
उसके तन और मन में बसी हुई थी। अन्य सांसारिक ज्ञान उसके
चित्त से एक-दम तिरोहित हो गया था। वह एक प्रकार की समाधि