एक भी बुरे और कड़े शब्द से नहीं बाद किया। उसकी सागे विप्रयोग-पीड़ा का कारण कुवेर था। पर उनकी निन्दा करने का उसे ख़याल तक नहीं हुआ। फिर देखिए, उसने अपनी मूर्खता
पर भी आक्रोश-विक्रोश नहीं किया। यदि वह अपने काम में असावधानता न करता तो क्यों वह अपनी पत्नी से वियुक्त कर दिया जाता। अपने सारे दुःख-शोक का आदि-कारण वह खुदही था। परन्तु न इसका भी उसे कुछ ख़याल नहीं उसने अपने को भी नहीं धिक्कारा। वह धिक्कारता कैसे? उसके हृदय में इस प्रकार के भावों के लिए जगह ही न थी। उसका हृदय तो अपनी प्रेयमी के निर्व्याज-प्रेम से उपर तक लबालब भरा था। वहां पर दूसरे विकार रह कैसे सकते थे?
मेघदूत में कालिदास ने आदर्श प्रेम का चित्र खींचा है। निःस्वार्थ और निव्र्याज प्रेम का जैसा चित्र मेघदूत में देखने को मिलता है वैसा और किसी काव्य में नहीं। मेघदूत के यक्ष का प्रेम निर्दोष है। और, ऐसे प्रेम से क्या नहीं हो सकता? प्रेम में जीवन पवित्र हो सकता है। प्रेम से जीवन को अलाकिक सौन्दर्य प्राप्त हो सकता है। प्रेम मे जीवन माधक हो सकता है। मनुष्य-प्रेम से ईश्वर-सम्बन्धी प्रेम की उत्पत्ति भी हो सकती है। अतएव कालिदास का मेघदत करुण रस से परिप्लुत है तो क्या हुआ। वह उच्च प्रेम का सजीव उदाहरण है।
जो ऐसे सच्चे प्रेम-मद से मत्त हो रहा है, जिसकी सारी इन्द्रिया अन्यान्य विषयों से खिंँचकर एक-मात्र प्रेमरस में सर्वतोभाव से डूब रही हैं जिसके प्रेम-परिपूर्ण हृदय में और कोई सामारिक