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मुद्रा-राक्षस
प्रतिहारी---इधर आवें महाराज इधर आवें।
चन्द्रगुप्त---(उठ कर चलता हुआ आप ही अाप)
गुरु आयसु छल सों कलह, करिहू जीय डराय।
किमि नर गुरुजनसो लरहि, यहै सोच जिय हाय॥
(सब जाते हैं---जवनिका गिरती है)
तृतीय,अङ्क समाप्त हुआ।