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मुद्रा-राक्षस

इस विषय का कोई दृढ़ प्रमाण नहीं है। चाहे जिस प्रकार से हो चाणक्य ने नन्दों का नाश किया। किन्तु केवल पुत्र सहित राजा के मारने ही से वह चन्द्रगुप्त को राज-सिंहासन पर न बैठा सका इससे अपने अन्तरङ्ग मित्र जीवसिद्धि को क्षपणक के

में राक्षस के पास छोड़ कर आप राजा लोगों से सहायता लेने की इच्छा से विदेश निकला। अन्त में अफगानिस्तान वा उसके उत्तर ओर के निवासी पर्वतक नामक लोभ-परतन्त्र एक राजा से मिलकर और उसको जीतने के पीछे मगध राज्य का आधा भाग देने के नियम पर उसको पटने पर चढ़ा लाया। पर्वतक के भाई का नाम बैरोधक और पुत्र का मलयकेतु था, और भी पाँच म्लेच्छ राजाओं को पर्वतक अपने सहाय को लाया था।

इधर राक्षस मन्त्री राजा के मरने से दुःखी होकर उसके भाई सर्वार्थ सिद्ध को सिहासन पर बैठा कर राजकाज चलाने लगा। चाणक्य ने पर्वतक की सेना लेकर कुसुमपुर चारों ओर से घेर लिया। पन्द्रह दिन तक घोरतर युद्ध हुश्रा । राक्षस की सेना और नागरिक लोग लड़ते-लड़ते शिथिल हो गये; इसी समय में गुप्त रीति से जीवसिद्ध के बहकाने से राजा सर्वार्थसिद्ध बैरागी हो कर बन में चला गया, इस कुसमय में राजा के चले जाने से राक्षस और भी उदास हुआ। चन्दनदास


मती और उसके पुत्र और कालिदास की भी प्रसिद्ध है) यह सब कह कर और उदास होकर बररुचि जङ्गल मे चला गया। बरुचि से शकटार ने राजा के मारने को कहा था, किन्तु वह धर्मिष्ट था, इससे सहमत न हुआ। वररुचि के चले जाने पर शकटार ने अवसर पाकर चाणक्य द्वारा कृत्या से नन्द को मारा।

  • लिखी पुस्तकों में यह नाम विरोधक, वैरोधक, वैरोचक, वैवोधक

विरोध, वैराध इत्यादि कई चाल से लिखा।