नगर के चारों ओर ३० फुट गहरी खाई, फिर ऊँची दीवार और उसमें ५७० बुर्ज और ६४ फाटक लिखे हैं। यूनानी लोग जो इस देश को Prassi प्रास्ति कहते हैं वह पालाशी का अपभ्रंश बोध होता है, क्योंकि जैनग्रन्थों में उस भूमि के पलाश वृक्ष से आच्छादित होने का वर्णन देखा गया है।
जैन और बौद्धों से इस देश से और भी अनेक सम्बन्ध हैं। मसीह से छः सौ बरस पहले बुद्ध पहले पहल राजगृह ही में उदास होकर चले गये थे। उस समय इस देश की बड़ी समृद्धि लिखी है और राजा का नाम विम्बसार लिखा है। (जैन लोग अपने बीसवें तीर्थङ्कर सुब्रत स्वामी का राजगृह मे कल्याणक भी मानते हैं)। बिम्बसार ने राजधानी के पास ही इनके रहने को कलद नामक बिहार भी बना दिया था। फिर अजातशत्रु और अशोक के समय में भी बहुत से स्तूप बने। बौद्धों के बड़े-बड़े धर्म समाज इस देश में हुए। उस काल में हिन्दू लोग इस बौद्ध- धर्म के अत्यन्त विद्वेषी थे। क्या आश्चर्य है कि बुद्धों के द्वेष ही से मगध देश को इन लोगों ने अपवित्र ठहराया हो और गौतम की निन्दा ही के हेतु अहिल्या की कथा बनाई हो।
भारत नक्षत्र नक्षत्री राजा शिवप्रसाद साहब ने अपने इतिहास तिमिरनाशक के तीसरे भाग में इस समय और देश के विषय मे जो लिखा है वह हम पीछे प्रकाशित करते हैं। इससे बहुत सी बातें उस समय की स्पष्ट हो जायँगी।
प्रसिद्ध यात्री हियानसांग सन् ६३७ ई० में जब भारतवर्ष में आया था तब मगधदेश हर्षवर्धन नामक कन्नौज के राजा के अधिकार में था। किन्तु दूसरे इतिहास लेखक सन् २०० से ४०० तक बौद्ध कर्णवंशी राजाओं को मगध का राजा बतलाते हैं और आन्ध्रवंश का भी राज्यचिह्न सम्भलपुर में दिखलाते हैं।