पृष्ठ:मुद्राराक्षस नाटक.djvu/१३९

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१२४ मुद्राराक्षस है। (प्रगट कानो पर हाथ रख कर) नारायण! देव पर्व- तेश्वर का कोई अपराध हमने नहीं किया। मलयकेतु-फिर पिता को किसने मारा? राक्षस-यह दैव से पूछो। मलयकेतु-दैव से पूछे । जीवसिद्धि क्षपणक से न पूछे ? राक्षस-(श्राप ही आप) क्या जीवसिद्ध भी चाणक्य का गुप्तचर हैं ! हाय ! शत्रु ने हमारे हृदय पर भी अधिकार कर लिया ? मलयकेतु-(क्रोध से ) शिखरसेन सेनापति से कहो कि राक्षस से मिल कर चन्द्रगुप्त को प्रसन्न करने को पॉच राजे जो हमारा बुरा चाहते हैं, उन में कौलत चित्रवर्मा मलयाधिपति सिंहनाद, और काश्मीराधीश पुष्काराक्ष ये तीन हमारी भूमि की कामना रखते हैं, सो इनको, भूमि ही में गाड़ दे, और सिंधुराज सुषेण और पार- सीकपति मेघाक्ष हमारी हाथी की सैना चाहते हैं सो इनको हाथी के पैर के नीचे पिसवा दो के पुरुष-जो कुमार की आज्ञा । (जाता है) मलयकेतु-राक्षस ! हम मलयकेतु हैं, कुछ तुम से विश्वासघाती राक्षस नहीं। इससे तुम जाकर अच्छी तरह चन्द्र) गुप्त का आश्रय करो। यही बात ऐथीनिय लोगों ने दारा से कही थी। Wilson कहते हैं कि चाणक्य की आज्ञा से ये राजे सत्र कैद कर लिये थे, मारे नहीं गाए थे। 'अर्थात् हम तुम्हारा प्राण नहीं मारते ।