पृष्ठ:मुद्राराक्षस नाटक.djvu/१३

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हुआ, चन्द्रगुप्त की रक्षा हुई, मलयकेतु पर यह प्रकट किया कि चाणक्य ने तुम्हारे पिता के प्राण हर लिये है, अब तुम्हारी बारी है, उसे राजधानी से भगा दिया । इस घटना के द्वारा जनता को यह विश्वास दिलाया कि राक्षस ने पर्वतक को मरवा और पर्वतक मित्र थे । इसी का लाभ उठाकर उसने चारो ओर कठोर रक्षा का प्रबन्ध कर दिया, जिससे राक्षस के बाद के प्रयत्न विफल हो गये। विषकन्या का प्रयोग करने के अपराध में जीवसिद्धि को राक्षस का मित्र और चन्द्रगुप्त का विरोधी घोषित कर देश-निकाला दे दिया, जिससे जीवसिद्धि राक्षस की मैत्री को और भी दृढ़ कर मका। इन गुणो के अतिरिक्त चाणक्य के चरित्र-गुण की सबसे प्रधान विशेषता यह प्रतीत होती है कि वह निस्वार्थी है । राजगुरू होते हुए भी वह कुटी में रहता है और भिक्षा का जो अन्न शिष्य लाते हैं वही लेता है । शत्रु के गुणो की प्रशंसा करने मे भी उदार है । अकारण रक्तपात उसने नहीं होने दिया। नीति बल से ही उसने शत्रु और उसके हृदय पर विजय प्राप्त की है।

राक्षस भी निस्पृह है। उसे स्वामी में अटल भक्ति है, उसके मरने के उपरान्त भी वह उसके वैर का प्रतिशोध लेने के लिये कटिवद्ध है । चाणक्य उसके इस गुण को जानता है, तभी वह उसे चन्द्रगुप्त का मन्त्री बनाना चाहता है। पर राक्षस सहज विश्वासी है, और कुटिल नीति नहीं जानता। तभी चाणक्य के व्यक्तियों को अपना घनिष्ठ मित्र और विश्वासपात्र बना लेता है । जीवसिद्धि को वह केवल अन्त में ही जान सका. कि वह उसका शत्रु था। जिस चीज से चाणक्य चौकन्ना हो जाता और दूसरे ढङ्ग से कार्य करता वह राक्षस के मन मे कोई उद्वेलन उत्पन्न नहीं करनी । सिद्धार्थक के हाथ मे अपनी अंगूठी देखकर वह उसके कथन को सहज ही स्वीकार कर लेता है,