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मुद्रा-राक्षस

पुरुष—जो कुमार की आज्ञा (बाहर जाकर सिद्धार्थ को लेकर आता है)

सिद्धार्थक—(मलयकेतु के पैरो पर गिर कर) कुमार! हमको अभय दान दीजिये।

मलयकेतु—भद्र! उठो, शरणागत जन यहाँ सदा अभय है। तुम इसका वृत्तान्त कहो।

सिद्धार्थक—(उठ कर) सुनिए मुझको अमात्य राक्षस ने यह पत्र देकर चन्द्रप्त के पास भेजा था।

मलयकेतु—जवानी क्या कहने को कहा था, वह कहो।

सिद्धार्थक—कुमार! मुझको अमात्य राक्षस ने यह कहने को कहा था कि मेरे मित्र कुलूत देश के राजा चित्रवर्मा, मलयाधिपति सिंहनाद, कश्मीरेश्वर पुष्कराक्ष,* सिन्धु महाराज सिन्धुसेन और पारसीक पालक मेघाक्ष इन पाँच राजाओं से आपसे पूर्व में सन्धि


  • कश्मीर के राजा के विषय में मुद्राराक्षस के कवि को भ्रम हुआ

है यह सम्भव होता है। राजतरंगिणी मे कोई राजा पुष्कराक्ष नाम का नहीं है। जिस समय में पाटलिपुत्र में चन्द्रगुप्त राज्य करता था उस समय कश्मीर में विजय जयेन्द्र सन्धिमान मेघवाहन और प्रवरसेन इन्हीं राजों के होने का सम्भव है। कनिंगहम, लैसन, विलसन इत्यादि विद्वानों के मत में सौ बरस के लगभग का अन्तर है, इसी से मैने यहाँ कई राजाओं का सम्भव होना लिखा। इन राजाओं के जीवन इतिहास में पटने तक किसी का आना नहीं लिखा है और न चन्द्रगुप्त के काल की किसी घटना से उन से सम्बन्ध है। मेघाक्ष मेघवाहन को लिखा हो यह सम्भव हो सकता है। क्योंकि मेघवाहन पहले गान्धार देश का राजा था फिर कश्मीर का राजा हुआ। भ्रम से इसको पारसीकराज लिख दिया हो। या सिल्यूकस का शैलाक्ष अनुवाद न करके मेघाक्ष किया हो। सन्धिमान ओर प्रवरसेन से सिन्धुसेन निकाला हो। भारतवर्ष