पृष्ठ:मुद्राराक्षस नाटक.djvu/१२

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वह मनुष्य को परख नहीं पाता। यही कारण है कि वह अपने शत्रु पर विश्वास करता है और मित्र पर अविश्वास । लुक-छिप कर बात सुनने और भेद देखने के लिए वह उत्सुक तो नहीं रहता, पर बुरा भी नहीं समझता।

नाटक के प्रधान पात्र तो चाणक्य और राक्षस हैं। चाण- क्य अत्यन्त मेधावी, दृढ़प्रतिज और कुटिल राजनीति का कुशल प्रयोक्ता है। उसने नन्दवंश को नाश करने का बीड़ा उठाया, उसे करके दिखा दिया। अब उसने राक्षस को मन्त्री बनाने का संकल्प किया है, उसे भी पूरा किया है। वह इतना दूरदर्शी है कि प्रत्येक घटना उसी के निश्चयानुसार घटती है। कारण इसका यह है कि समस्त कांड उसी का रचा हुआ है। मलयकेतु उसी के यंत्र में फस कर भागा है । भागुरायण वहीं से उसके साथ है, और इतना उसके साथ है कि उसे स्वतन्त्र रूप से सोचने का अवसर तक नहीं देता। भद्रभटादि सभी भागकर उसके साथ हो गये है। उनसे उसे पूरा सहयोग मिला है। उन पर अविश्वास का कहीं अवसर नहीं आया। जब उन्होने विश्वासघात किया है, तब सब समाप्त हो चुका है; यह विश्वासघात बिल्कुल अंत मे हुआ है। ऐसे ही उसने राक्षस को घेर लिया है : जीवसिद्धि और सिद्धार्थक उसके अपने बन कर रहते हैं और चाणक्य का कार्य साधते है। इस सबसे चाणक्य की एक विशेषता यह प्रकट होती है कि वह मनुष्यों की परख जानता था और उन्हें वश में रखना जानता था । उसके साथ कोई भी विश्वासघात नहीं कर सका। उसके भेदिये बड़े पक्के थे। हर बात का भेद देते थे। वह किसी भी घटना का अपने हित मे उपयोग करने मे कुशल था । चन्द्रगुप्त के लिए भेजी गयी. 'विषकन्या' का प्रयोग पर्वतक पर करा दिया । इससे 'चन्द्रगुप्त' का राज्य एक क्षत्र