क्षपणक---राक्षस ने कुछ अपराध नहीं किया है, अपराधी तो हम हैं।
भागुरायण---ह ह ह ह! भदन्त! तुम्हारे इस कहने से तो मुझको सुनने की और भी उत्कण्ठा होती है।
मलयकेतु---(आप ही आप) मुझ को भी।
भागुरायण---तो भदन्त! कहते क्यों नहीं?
क्षपणक---तुम सुन के क्या करोगे?
भागुरायण---तो जाने दो, हमें कुछ आग्रह नहीं है, गुप्त हो तो मत कहो।
क्षपणक---नहीं उपासक! गुप्त ऐसा नहीं है, पर वह बहुत बुरी बात है।
भागुरायण---तो जाओ, हम तुम को परवाना न देंगे।
क्षपणक---(आप ही आप की भाँति) जो यह इतना आग्रह करता है तो कह दें (प्रकट) श्रावक! निरुपाय होकर कहना पड़ा। सुनो---मै पहिले कसुमपुर मे रहता था, तब संयोग से मुझ से राक्षस से मित्रता हो गई, फिर उस दुष्ट राक्षस ने चुपचाप मेरे द्वारा विषकन्या का प्रयोग कराके विचारे पर्वतेश्वर को मार डाला।
मलयकेतु---(आँखो में पानी भरके) हाय हाय! राक्षस ने हमारे पिता को मारा, चाणक्य ने नहीं मारा हा!
भागुरायण---हॉ तो फिर क्या हुआ?
क्षपणक---फिर मुझे राक्षस का मित्र जानकर उस दुष्ट चाणक्य ने मुझको नगर से निकाल दिया, तब मैं राक्षस के यहाँ आया, पर राक्षस ऐसा जालिया है कि अब मुझ