को हित अनहित तासु को, यह नहिं जान्यो जात।
तासों जिय सन्देह अति, भेद न कछू लखात॥
(प्रगट) विजये! भागुरायण कहाँ हैं देख तो?
प्रतिहारी---महाराज! भागुरायण वह बैठे हुए आपकी सेना के जाने वाले लोगो को राहखर्च परवाना बाँट रहे हैं
मलयकेतु---विजये! तुम दवे पॉव से आओ, मैं पीछे से जाकर मित्र भागुरायण की आँखें बन्द करता हूँ।
प्रतिहारी---जो आज्ञा।
(दोनों दवे पॉव से चलते हैं और भासुरक आता है)
भासुरक---(भागुरायण से) बाहर क्षपणक आया है उसको परवाना चाहिए।
भागुरायण---अच्छा, यहाँ भेज दो।
भासुरक---जो आज्ञा (जाता है)।
(क्षपणक आता है)
क्षपणक---श्रावक को धर्म लाभ हो।
भागुरायण---(छल से उसकी ओर देख कर) यह तो राक्षस का मित्र जीवसिद्धि है (प्रगट) भवन्त! तुम नगर मे राक्षस के किसी काम से जाते होगे।
क्षपणक---(कान पर हाथ रख कर) छी छी! हम से राक्षस वा पिशाच से क्या काम?
भागुरायण---आज तुम से और मित्र से कुछ प्रेम कलह हुआ है, पर यह तो बताओ कि राक्षस ने तुम्हारा कौन अपराध किया है?