( ५६ ) पढ़ाकर भेज दिया। उसने पिछली रात को मलयकेतु से जाकर उसका बड़ा हित बनकर उससे कहा कि श्राज चाणक्य ने विश्वासघातकता करके आपके पिताको विषकन्या के प्रयोग से मार डाला और प्रौसर पाकर आपको भी मार डालेगा। मल यकेतु बेचारा इस बात के सुनते ही सन्न हो गया और पिता के शयनागार में जाकर देखा तो पर्व तक को बिछोने पर मरा हुश्रा पाया। इस भयानक दृश्य के देखते ही मुग्ध मलयकेतु के प्राण सूख गये और भागुगयण की सलाह से उसी रात को छिपकर वहाँ से भागकर अपने राज्य की ओर चला गया। इधर चाणक्य के सिखाये भद्रभट इत्यादि चंद्रगुप्त के कई बड़े बड़े अधिकारो प्रकट में राजद्रोही बन कर मलयकेतु और - मागुरायण के साथ ही भाग गये। राक्षस ने मलयतु से पर्वतक के मारे जाने का समाचार सुनकर अत्यंत सोच किया और बड़े श्राग्रह तथा सावधानी से चंद्रगुप्त और चाणक्य के अनिष्ठसाधन में प्रवृत्त हुआ।
- चाणक्य ने कुसुमपुर में दूसरे दिन यह प्रसिद्ध कर दिया कि पर्वतक
और चंद्रगुप्त दोनों समान बंधु थे, इससे राक्षस ने विषकन्या भेजकर पर्वतक को मार डाला और नगर के लोगों के चित्त पर, जिनको यह सब गुप्त अनुसधि न मालूम थी इस बात का निश्चय भी करा दिया।
- इसके पीछे चाणक्य और गक्षस के परस्पर नीति की जो चोटें चली हैं
उसी का.इस नाटक में वर्णन है। (ख) . . जब नंद रोग शय्या से उठे तब बड़े अत्याचारी हो गए और कुल राज्य संबंध अपने प्रधान मंत्री शकटार के हाथ में दे दिया जो स्वतत्रता से सबों कार्य करने लगा। एक दिन बृद्ध राजा मंत्री के साथ नगर के दक्षिण पहाड़ • विल्फोड की 'क्रॉनौलोजा अाँव इण्डिया' से उद्धत (विलिश्रम फ्रैंक- लिन्स द एन्शट साइट श्रीव पालीब्रोथा, सन् १८९७) .