• लाभ देकर अपनी ओर मिला लें और नंदों का नाश कर के इसीको गजा बनावें। यह सब सलाह पक्की हो जाने के पीछे चाणक्य तो अपनी पुरानी कुरी में चला गया और शकटार ने चंद्रगुप्त और विचक्षणा को तब तक सिखा पढ़ाकर पक्का करके अपनी ओर फोड़ लिया। चाणक्य ने कुटी में जाकर इलाहल विष मिले हुए कुछ ऐसे पकवान तैयार किए जो परीक्षा करने में न पकड़े जाय, किन्तु खाते हो प्राण-नाश हो जाय। विचक्षणाने किसी प्रकार से महानंद को पुत्रों समेत यह पकवान खिला दिया, जिससे वेचारे सब के सब एक साथ परमधाम को सिधारे*। सोरठा-इमि कहि द्रुत गहि चाम, श्राप श्राप सिख मैं दियो। तुरतहि गयो बुझाय, ज्ञान पाय मन भ्रांत जिमि ॥६॥ बिदा कियो नृप दूत, उर मैं सर को अंक करि । निरखि बृहदरथ-पूत, सबन सहित कोप्यो अतिहि ॥७॥
- नाटककार ने अं० ४ श्लोक १२ में नंदों के नाश का कारण चाणक्य-
कृत अभिचार ही लिखा है। (संपा० ) .. भारतवर्ष की कथाओं में लिखा है कि चाणक्य ने अमिचार से मारण का प्रयोग करके इन सभों को मार डाला। विचक्षणा ने उस अभिचार का निर्माल्य किसी प्रकार इन लोगों के अंग में छुला दिया था। किन्तु वर्तमान काल के विद्वान् लोग सोचते हैं कि उस निर्माल्य में मंत्र का बल नहीं था, चाणक्य ने कुछ औषध ऐसे विषमिश्रित बनाये थे कि जिनके भोजन ' वा सशं से मनुष्य का सद्यः नाश हो जाय । भट्ट सामदेव के कथा-सरित्सागर के पीठलंबक के चौथे तरंग में लिखा है- योगानंद को ऊँची अवस्था में नये प्रकार की कामवासना उत्पन्न हुई। वररुचि न यह सोच कर कि राजा को तो भोगविलास से छुट्टी ही नहीं है, इससे राजकाज का काम शकटार से निकाला जाय तो अच्छी तहर से चले । यह विचार कर और राजा से पूछ कर शकटार को अंधे कुएँ से निकालकर वररुचि ने मंत्री पद पर नियत