नहीं सोच सकते। शकार ने इस विषय में विचक्षणा को सहायता तेने का वृत्तांत कहा और रात को एकांत में बुलाकर चासस्य के सामने उससे सब बात का करार ले लिया। महानंद के नौ पुत्र थे। आठ विवाहिता गनो से और एक चंद्रगुप्त मुग नाम की एक नाइन स्त्रो से। इसीसे चद्रगुप्त को मौयं और वृषल भी कहते है। चंद्रगुप्त बड़ा बुद्धिमान या । इसोसे और आठों भाई इससे भोतरी द्वेष रखते थे चंद्रगुप्त की बुद्धिमानी की बहुत सी कहानियाँ है। कहते हैं कि एक बेर रूम के बादशाह ने महानंद के पास एक कृत्रिम सिंह लोहे की जाली के पिंजड़े में बंद करके मेजा और कहला दिया कि पिंजड़ा टूटने न पावे और सिंह इममें से निकल जाय। महानन्द ओर उसक आठ औरस पुत्रों ने इसको बहुत कुछ सोचा, परंतु बुद्ध ने कुछ काम न किया। चंद्रगुप्त ने विचारा कि यह सिंह अवश्य किसी ऐसे पदार्थ का बना होगा, जो या तो पानी से या आग से गल जाय, यह साचार पहले उसने उस पिंजड़े को पानी के कड में रखा और जब वह पानी से न गला तो उस पिंजड़े के चारों तरफ भाग जलवाई. जिसकी गर्मी से वह सिंह, जो लाह और राल का बना था, गल गया। एक बेर ऐसे ही किसी बादशाह ने एक अगीठी में दहकती हुई आग, एक मेरा सरसों और मीठा फल महानन्द के पास अपने दूत के द्वारा मेन दिया। राजा की सभा का कोई
- दहकती श्राग की कथा "जरासंघवध महाकाव्य" में भी है कि जरासंघ
ने उग्रसेन के पास अँगीठो भेजी थी, शायद उसी से यह कथा निकाली गई हो, कौन जाने। सवैया-रूपे की सानिधान अनुर अँगीठी नई गढ़ि मोल मँगाई । ता मर्षि पावकयुज धरयो 'गिरिधारन' जामें प्रभा अधिकाई || तेज सो ताके ललाई भई रज में मिली पासु सबै रजताई। मानो प्रवाल की थाल बनायकै लाल की रास बिसाल लगाई॥१॥ डांक के पावक दूत के हाथ दै बात कही इहि भाँति बुझायकै। भोज मुश्राम सभा मह सम्मुखराखिकै यों कहिये सिर नायकै॥