पृष्ठ:मुद्राराक्षस.djvu/३५

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के म्लेच्छों के मुमलमान होने के सिद्धांत को भ्रांतिमय बतलाता ह * : यह मानना कि नाटक के उसी श्लोक में ग्लेच्छ का अर्थ मुसलमान लि. जाय और उसके पहले के प्रयोग में वैसा न समझा जाय, एक नया सिद्धांत स्थापिन काना है, पर उसके लिये कोई उत्तम कारण नहीं होने से वह मा नहीं है। पूर्वोक्त विचार से प्रो० विलसन की तकना की प्रथम उक्ति अत्यं निर्वत हो जती है। पर यदि उनकी उस उक्ति को मान भी लिया जाये किम्लेच्छ से मुसलमानों का अर्थ लिया गया है तब भी यह विचारणार है कि मुद्रारानस का समय ईसवी ग्यारहवीं या बारहवीं शताब्दि कैसे है सकता है । 'छैरुद्विज्यमाना भुजयुगमधुना, संश्रिता राजमूते:' से मुसलमानों" के अधिकार स्थापित होने की धनि नहीं निकलती। श्लोकांश का आशय है कि म्लेच्छों के उपद्रवों से दुखित होकर राज्यलतमी विष्णुरूप तत्सामयिक राजा के बल की आश्रित होती है। इस श्राशय से यही ज्ञात होता है कि मुसलमानों के आक्रमण उस समय तक चणिक थे तथा हिंदों द्वारा वे दलित किये गये थे और गजनवी तथा गोरी की चढ़ाइयों के समान उनका स्थायी प्रभाव भारतवर्ष पर नहीं पड़ा था। इतिहास से ज्ञात होता है। कि लगभग एक शताब्दि तक सिंध की ओर से मुसलमानों को चढ़ाइयाँ होती रही, पर सभी में वे एक कासिम के पुत्र मुहम्मद की चढ़ाई को छोड़ कर, असफ न-प्रयत्न हुए। सिंध की सीमा के मुसलमान सूबेदार ने भरोच, उज्जैन और मालवा तक सेनाएँ भेजी थीं पर उसके उत्तराधिकारी तामीम के समय मुसलमान भारत के अनेक स्थानों से हट पाए और उस समय तक वे प्राचीन समय के अधिकार से आगे नहीं बढ़े थे। जनेद की

  • मुसलमान म्लेच्छा का पित्रों को जलदान देना पूर्व इस्लाम काल का

द्योतक है, बाद का नहीं। यदि नाटककार का ग्लेच्छ शब्द से मुसलमान तात्पर्य था और वे दसवीं या ग्यारहवीं शताब्दि में वर्तमान थे तब उन्हें कांबोज, वाल्हीक आदि नाम लिखने की आवश्यकता नहीं रह गई थी। उस समय तक अफगानिस्तान तथा उसके पूर्व के प्रांतों की सभी जातियाँ मुसलमान हो गई थी तथा वे मिन्न भिन्न जातियाँ नहीं रह गई थीं। इलिपट डाउसन जि० १ पृ० १२६ ।