पृष्ठ:मुद्राराक्षस.djvu/३४

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किया गया और इनकी सम्मति को बाद के यूरोपियन विद्वान् ध्रुव सत्य मान कर उसी का प्रचार करते रहे। २-पूर्वोक्त निश्चय के विरुद्ध पहिले पहिल बंबई हाई कोर्ट के जज पं० काशीनाथ तैलंग ने लेखनी उठाई और विद्वत्तापूर्ण विवेचना कर दिखलाया कि उसकी भित्ति निर्मूल है। म्लेच्छ शब्द से मुसलमानों ही से तात्पर्य है, ऐसा समझने का कोई विशेष कारण नहीं हैं और संस्कृत साहित्य के प्रत्येक युग में इससे यही तात्पर्य निकलता है, ऐसा कहा ही नहीं जा सकता। अब प्रोफेसर विलसन का कथन तभी ग्राहय हो सकता है जब इसके साथ साथ अन्य कोई कारण भी दिया गया हो पर ऐसा नहीं किया गया है। साथ ही नाटक में मलयकेतु मलेच्छ कहा गया है पर उसका, उसके चाचा वैरोचक तथा उसके पिता पर्वतक, पवतेश्वर या शैलेश्वर के नाम मुसलमानों के नामों से नहीं हैं और मृत पिता को जल देने का उल्लेख भी मुद्राराक्षस मलयकेतु के नाम पर जो कुछ कहा गया है उसके साथ यह भी उल्लेख करना उचित है कि पारस के राजा का नाम भी मेघनाद, मेघाख्य या मेघाच दिया गया है। ये नाम भी पारसीय नहीं ज्ञात होते पर ये पारसीय नाम के संस्कृत रूप हैं, जैसा भारतेन्द बा० हरिश्चंद्र ने अलेक्जैंडर का अलक्षेन्द्र तथा पोरशिया का पुरश्री गढ़ लिया था। पर दोनों में इतनी विभिन्नता है कि पारसीक के बारे में हम जानते हैं कि वे कौन हैं, उसका अर्थ रूढि है तथा उस पर कोई सिद्धांत नहीं खड़ा करना है, पर म्लेच्छ शब्द से किससे तात्पर्य है, इसका अर्थ रूढि नहीं है और इसकी भित्ति पर पूग सिद्धांत खड़ा किया गया है। म्लेच्छ शब्द का प्रयोग उसी प्रकार का है जिस प्रकार ग्रीकों का बर्बर या बारवे रेयन शब्द है वे ग्रीकों से इतर सभी जातियों का उसो नाम से संबोधित करते थे। मुद्राराक्षस ही में मिलेच्छराजबलस्य मध्यात् प्रधानतमाः पंच राजानः' ( अंक १५० २२४-६२ ) में कौलूत चित्रवर्मा, मलयनरपति सिंहनाद, काश्मीर-राज पुष्कराक्ष, सिधु नरेश सिंधुसेन और पारसीक मेघाद सभी परिगणित हैं। यह सभी राजे पश्चिमोत्तर सीमा के हैं। महाभारत में भी म्लेच्छ शब्द का प्रयोग हुश्रा है (आदि पर्व', सर्ग १७७ श्लोक ३७) ।