पृष्ठ:मुद्राराक्षस.djvu/३३

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( २८ ) , हूण-हूणों का उल्लेख महाभारत, मार्कंडेय पुराण, रघुवंश, वृहत्स आदि अनेक ग्रंथों में मिहता है, जिससे यह निश्चित रूप से नहीं कहा. सकता कि हूणों का उल्लेख करने के कारण अमुक प्रथकार अमुक सर में हुआ। भारतवर्ष पर श्वेत हूणों का आक्रमण पाँचवीं तथा छठी शता. में हुआ था पर इसके पूर्व क्या उनमें से कुछ भारत में आकर पंजा आस पास नहीं बस सकते थे ? मुद्राराक्षस में हूण विजयगर्वित जाति । हे प्रत्युत् मलयकेतु की आक्रमणकारी सेना का एक अंश मात्र उस जं का था। छठी शताब्दि के पूर्वाद में हूणों को बालादित्य और यशोधर्मा, पूर्णतया पराजित कर उनके साम्राज्य का नाश कर दिया, जिसके कुछ समय बाद हूणों के नाम का भी एक प्रकार लोप हो गया। इन सब जातियों तथा स्थानों पर विवेचना करने के अनतर यही ज्ञा होता है कि मुद्राराक्षस में इनका जिस प्रकार उल्लेख है, उससे नाटक का निर्माण-काल पाँचवीं शताब्दी प्रत्युत् उसके पहिले का रहा होगा। ११-प्रथ-निर्माण काल १-मुद्राराक्षप्त के निर्माण-काल के निश्चित करने वा पहिले पहिर मो० विलसन ने प्रयास किया था। इन्होंने नाटक के दो श्लोकाश लेकर अरना सिद्धांत खड़ा किया है । पहिला म्लेच्छ शब्द है, जिसका नाटक, • कई बार प्रयोग हुअा है पर अंतिम श्लोक के प्रयोग को मुख्य मान कर उसी पर तर्क किया गया है । म्लेच्छै रुद्विज्यमाना भुजमुगमधुना सश्रित राजमूर्तेः श्लोक के ग्लेच्छ से मुसलमान का तात्पर्य लिया गया है और गजनवी तथा गोरी का समय निश्चित किया गया है। दूसरा श्लोक नाटक के पांच अंक के प्रारंभ में है। बुद्धिबल निमः सिव्यमाना देशकलसैः । दर्शयिष्यति काय फले गुरुकंचाणक्य नीतिलतां ॥ इस पर प्रो० विलसन का कथन है कि इस प्रकार की बालकृत शैली नाटक के निर्माण-काल की रचनाओं में स्वाभाविक रूप से नहीं मिलती। • स्यात् हिन्दु अपने पड़ोसियों से इसे ग्रहण कर रहे थे। पूर्वोक्त तक के आधार, पर मुद्राराक्षस का निर्माण काल ग्यारहवों या बारहवीं शताब्दि निश्चित