- A .. ( २७ ) । शक-विक्रम श का के एक शताब्दि से अधिक पूर्व य एहची नामक एक व्रात्य जाति चीन से निकाल दी गई श्रीर इसने सर दरिया के तटस्थ प्रांत में बसी हुई शक जाति को हटाकर वहाँ अधिकार कर लिया। इसी समय या इसके कुछ पूर्व शकों ने पारस के पश्चिम ओर के प्रांत पर अधिकार र लिया था, जो शकस्थान या बाद को सीस्तान कहलाया । शकों के समूह का कुछ अश पह्नवों के साथ भारत में भी पाया और ग्रीकों के छटे छोटे गज्यों को अधिकृत करके तक्षशिला तथा मथुरा के आस पास बस गया। इसके अनतर लगभग दो शताब्दि बाद शकों ने सुराष्ट्र श्रथोत् काठियावाड़ पर भी अधिकार कर लिया और वहाँ के क्षत्रप वश को चौथी शताब्दि के मध्य में चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ने अंत किया। इसके अनतर शक जाति जिन जिन देशों में बस गई थी, वहाँ के निवासियों में मिल गई और उसका नाम मिट गया । महाभारत में भी शकों का उल्लेख है-शकानां पहबानाञ्च दरदानाञ्च ये नृपः। ( उद्योगपर्व स. ३ श्लो० १५)। सिंध-भारत के पश्चिम बिलूचिस्तान से स्टा हुश्रा प्रांत सिंध है, जिसके निवासी सैंधर कहलाते थे। अब वे सिंधी कहलाते हैं। विष्णु पुराण अंश २ अध्याय ३ श्लो० १७ में[ 'सौवीग: सैंधवाः हुणा: शास्वा शाकल वासिनः' ] सैंधवों का उल्लेख है। सिंघ सम्राट अशोक के साम्राज्य में सम्मिलित था। मौर्य साम्राज्य की अवनति पर पह्नवी जाति का सिंध पर अधिकार हो गया था । वि० सं० की दूसरी शताब्दि में कुशान वंशी सम्राट कनिष्क ने सिंध देश अपने साम्राज्य में मिला लिया। कुशान वंश की अवनति पर उनके प्रांताध्यक्ष सुराष्ट्र के शक क्षत्रपों का बल इतना बढ़ा कि मालवा, सिंध, कच्छ, राजपुताना तथा उत्तरी कोंकण तक उनका राज्य फैल गया। सं० ४४५ में चंद्रगुप्त द्वितीय ने इस राज्य का अंत कर दिया। इसके अन'तर सिंध में शूद्रो का राज्य हुश्रा, जिसके अंतगत बिलूचिस्तान भी था! उनी प्रांत की रक्षा में सिंध का राज्य स्थापित हुअा। अंतिम राजा सिंइराय तथा उनके पुत्र माहसी अरबों से युद्ध करने में सं० ७०१ तथा ७०३ में मारे गए। उनके ब्राह्मण मंत्री चच तथा उनके पुत्र दाहिर सिंध के राजा हुए। इन्हो दाहिर के समय कासिम के पुत्र मुहम्मद ने सिंध पर चढ़ाई की थी।
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