पृष्ठ:मुद्राराक्षस.djvu/२५

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पहले ही से शंका करता था (अंक० ४ पं० १०४) और अंत में अविश्वास योग्य पुरुषों के कहने सुनने पर विश्वास कर उसने उसे निकाल भी दिया। इसमें चंद्रगुप्त के समान योग्यता नहीं थी। यह बिना विचार किए मनमाना कर बैठता था, जैसे कि पाँच राजाओं का मार डालना अंक ५ पं० ४६५-३०)। दृढ़ प्रकृति का न होने से यह शत्रु के भेदियों की बातों में या गया। ___ अन्य पात्रों में चंदनदास मित्रस्नेह का आदर्श रूप है। धन प्राण प्रादि सभी को तिलांजलि देकर इसने उसका निर्वाह किया। शकटदास ने भी मित्रता निबाही । भागुरायण ने मलयकेतु से स्नेह हो जाने पर भी स्वामिभक्ति का मार्ग नहीं छोड़ा (अं०५५० ५७-८ ) अन्य पात्रों में भी यह गुण वर्तमान था। 8-कथावस्तु । नाटक का कथावस्तु बड़ी सफलता तथा बुद्धिमानी से संगठित किया गया है और उसकी मुख्य घटनाएं इस प्रकार हैं। प्रथम अंक-(१) राक्षस की मुहर की अँगूठी का दैवात् चाणक्य को मिल जाना (२) शकटदास से जाली पत्र लिखवाना तथा उसको संदेश सहित सिद्धार्थक को सौंपना (३) जीवसिद्धि का देशनिर्वासन, शकटदास का भगाना तथा चंदनदास का कैद होना । द्वितीय अंक-(४) शकटदास का चाणक्य के चर द्विार्थक के साथ भागना और सिद्धायक का राक्षस की सेवा में नियुक्त होना (५) मलयकेतु के गहनों को सिद्धार्थक को देना और सिद्धार्थक का मुहर लौटाना ( ६ ) पर्वतक के गहनों को धोखे से राक्षस के हाथ बेंचना । तृतीय अंक-(७) चंद्रगुप्त और चाणक्य का झूठा कलह । चतुर्थ अंक--(८) मलयकेतु का राक्षस पर शंका करना और चाणक्य के चर . भागुरायण पर विश्वास। पंचम अंक-(६) मजयकेतु का राक्षस से कलह • कर पाँच सहायक राजाओं को मरवा डालना (१०) मलयकेतु का युद्ध करने जाना तथा · कैद होना। छटा अंक-(११) चंदनदास के रक्षार्थ . चंद्रगुप्त की अधीनता मानने के लिए चाणक्य के चर का चतुरता से राक्षस को बाध्य करना । सतवा अंक-( १२ ) अंत में राक्षस का मंत्रित्व ग्रहण करना।