१६४ मुद्राराक्षस नाटक सिद्धि से राक्षस द्वारा पर्वतक का मारा जाना कहलाया गया है। भागुरायण जीवसिद्धि को पहिचानता है पर कपट से उसे राक्षस का मित्र सुनाकर मलयकेतु पर प्रभाव डालता है। मूल में स्वगत . ८८-प्रेम-कलह-दिखावटी झगड़ा। राक्षस और जीवसिद्धि की मित्रता संस्थापित की जा रही है। इतनो बातचात मा विश्वास उत्पन्न करने के लिए है। ____६०-अपराधी तो हम हैं-मल में 'हम मंद भाग्य अपने कम से लज्जित हैं' है। ११४-६-जिसमें पुरानी बात याद कर मलयकेतु इस प संदेह न करे, इससे भागुरायण अपने समझने की बात कर १२३-४-श्रुति-भेद-कर-श्रवण-विदारक, सुनने हो से प्रत्य पीड़ा पहुँचाने वाला, अत्यंत कष्टकर। शत्रु-पिता-वध का दोष लगाए जाने से यहाँ राक्षस लक्षित है। • मलयकेतु कहता है कि हे मित्र ! शत्रु ( राक्षस ) ने जो अत्य, कठोर कम किया है, उसे मैंने सुना, जिससे इस समय (भार" इतना दिन बीतने पर ) पिता-मरण का शोक मुझे दूना माल पड़ता हैं। . मूल में 'शत्रु के मित्र द्वारा सुना जाना अधिक है। इसमें दुःख का मानों दूना होना उत्प्रेक्षा है। १२५-स्वगत द्वारा नाटककार बात स्पष्ट करता जाता है। " __ १२६-प्रथम अंक के पं० २५८ में चाणक्य जिस काम उल्लेख करता है वही काम यहाँ पूर्ण हो गया। १२७-मल में कोष्ठक के भीतर 'प्रत्यक्षवदाकाशे लक्ष्य वया है, जिसका अर्थ हुआ कि 'प्रत्यक्ष पदार्थ के समान आकाश की ओर देखते हुये। 'भरे राक्षस!' के बाद युक्तमिदम् शब्द है। अर्थ. 'यहचत है।
पृष्ठ:मुद्राराक्षस.djvu/२३२
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
![](http://upload.wikimedia.org/wikipedia/commons/thumb/f/f5/%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B7%E0%A4%B8.djvu/page232-1024px-%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B7%E0%A4%B8.djvu.jpg)