पृष्ठ:मुद्राराक्षस.djvu/२२९

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रिशिष्ट व होने लगा अर्थात् अस्ताचलगामो हुआ त्योहा दे धीरे धीरे खिस- ने अर्थात् दूर होने लगीं। यहो स्वार्थी सेवकों का भी गुण कि ऐश्वर्यहीन होते ही वे स्वामियों को छोड़ देते हैं। इसमें उत्प्रेक्षा है। पंचम अंक , इस अंक से फलागम संबंधी निर्वहण संधि का प्रारंभ होता है। सिद्धार्थक के पास का पत्र और मोहर वही है, जिसे चाणक्य उसे सौंपा था ( देखिए अंक १ पं० २८१ ) और गहनों की टी वह है, जिसे चाणक्य के कथनानुसार उसने शकटदास के चाने के पुरस्कार में राक्षस से पाया था तथा उसी के मुहर से कित कराया था। ( देखिए अंक २५० ३९१-४००) ४.५---देश और कालरूपी घड़े से ( उपयुक्त देश और समय का) द्धिरूपी जल द्वारा सींची गई (बुद्धिपूर्वक विचार करके ) चाणक्य नीतिलता ( कार्य करने से ) बहुत फल देगी (अवश्य सफलता मलेगी)। इस दोहे से यह सूचना दी गई है कि चाणक्य का फैलाया हुमा तिजाल अब फलदायक होने वाला है। ____१०-क्षपणक के देखने को अशुभसूचक मानते थे, जिसके रिहारार्थ शुरूनग्नि तथा सूर्य प्रातः पश्येत् सदा बुधः' के अनुसार गनार्थक सूर्य का दर्शन किया। १२-१३-अहंत-जिन देव, जैनदेवता, बौद्ध सन्यासी। ____उन अहंतों को नमस्कार है जो अपने बुद्धिवल से परलोक की बसिद्धियों को प्राप्त करते हैं। इससे चाणक्य के बुद्धिबल की ध्वनि निकलती है, श्लेषा- कार है। . .१४-भदंत-बौद्ध महंतों को पुकारने का प्रतिष्ठावाचक शब्द । मु० ना०-११