पृष्ठ:मुद्राराक्षस.djvu/२२२

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१५३ पसंहार, जिसमें घटना चक्र को संकुचित कर उसका फल प्रतिपादित किया जाता है। ... २७-मूल में 'पकड़ा जा सकता है अमात्य' के अनंतर यह है कि 'बाई आँख का फड़कना इन प्रास्तावों का प्रतिपादन करता है।' इसके स्थान पर अनुवाद में यह अंश है--यह उलटी बात हुई और सी समय असगुन भी हुआ। go-मूल के अनुसार 'यह' के बाद 'कार्य के आधिक्य के कारण' बढ़ाया गया है। ४५-४६-मल के श्लोक का पर्थ- निखिल मगनालय देवतों के समान राजाओं का दर्शन ही नीचों को दुर्लभ है ; उनके सन्निकट होना तो दूर की बात है। । अनुवाद का अर्थ स्पष्ट है । मूल में दीपकालंकार है। ५५-५८-छाती पीटने मे जिनकी चूड़ियाँ फूट गई हैं, आँचल कहाँ हट गया है इसकी जिन्हें कुछ भी सुध नहीं है, 'हाय, हाय' करके जो रो रही हैं और धूल में लोटने से जिनकी चोटियाँ धूल से पर गई हैं, ऐसे वैधव्य-शोक के कारण जो दशा मेरी माताओं की हुई थी, वही दशा मैं शत्रु को स्त्रियों की कराकर (उनके पतियों को मार उन्हें वैवव्य-शोक में डालकर ) पिता को तृप्त करूँगा। 'हुए और न हुए' वस्तु संबंध के बिंबानुर्विव भाव से निदर्शना अलंकार है । 'मातुगण' की जो दशा हुई वही शत्रु की स्त्रियों की करने से समविनिमय परिवृत्ति अलंकार भी हुआ।

६०-६१-रण में मृत्यु होने से वीरों की गति पाकर हम भी

पिता के पास चले जायेंगे अथवा अपनी माताओं के शोकाश्र को (उनकी आँखें बदला लेने से शुष्क कर) शत्र की स्त्रियों की आँखों में रखेंगे (अर्थात् उनके आँखों से शोकाश्रु प्रवाहित करेंगे)। . मूल का यह शुद्ध अनुवाद है । मल में 'आजिविहितेन' से और अनुवाद में 'रन मरि वीरन गति' से भी यह ध्वनि निकलती है कि