पृष्ठ:मुद्राराक्षस.djvu/२०१

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मुद्राराक्षस नाटक घरा कि अंत म उसे कारव-सेना के रक्षार्थ उस शक्ति को चालाना पड़ा, जिससे घटोत्कच मारा गया । यह हिडंबा नामक राक्षसी का पुत्र था, जिसके भाई हिडंब को भीम ने उस समय मार डाला था जब वे वारणावर्त स भाइयों के साथ भाग रहे थे। हिडंबा ने भीम से विवाह कर लिया था, जिससे यह पुत्र हुआ था । महाभारत में यह कथा विस्तार के साथ दी गई है। चाणक्य ने पर्वतक की मृत्यु के विषय में जो झूठी बात उड़ाई थी कि राक्षस ने विषकन्या प्रयोग कर उसे मार डाला था, वह राक्षस को अभी तक विदित नहीं था। २०१-वैरोधक-संस्कृत प्रतियों में वैरोचक है। २०६-इससे बाहर......... जाँच लो-मूल का भाव है कि 'बाहरी द्वार से लेकर समग्र राजभवन की तैयारी करो। आगे क 'तोरनों से शोभित करने से भी इसी से मिलान मिलता है। २१४-राजभक्ति-दारुवर्म की यह राजभक्ति नदों के प्रति थी. जिनका बदला लेने की उत्कट इच्छा से उसने जल्दी कर दी। २१५-विकल-संशय, सन्देह ।। २२४-उस सीधे........"बना कर-इस स्थान पर मूल में 'तपस्विनः किमपि उपांशुबधम् आकलय्य है, जिसका अर्थ कि तपस्वी की किसी प्रकार गुप्तहत्या करने का निश्चय कर। वस्तुत: चाणक्य ने यही समझकर कि राक्षस ने राजभवन प्रवेश के समय चंद्रगुप्त को मार डालने के लिए अवश्य अनेक उपाय किये होंगे और उन उपायों का उस पूर्ण पता हो या न हो इसलिए उसने चंद्रगुप्त के स्थान पर वैरोधक को सजा कर भेजा कि यदि यह मारा जायगा तो उसका दोनों तरह लाभ है। २३६-२४०-जिस..... भेजा था-मूल में इस प्रकार है 'युष्मनु प्रयुक्त नैव चंद्रगुप्तनिषादिना बर्वरकेण' । अर्थात् 'पापक भेजा हुअा चन्द्रगुप्त का हाथोगान् बर्वरक' । चद्रगुप्त को मार के लिए ही भेजना गदस का उद्देश्य था। मघादी का अर्थ हाथीवा