पृष्ठ:मुद्राराक्षस.djvu/१९४

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२-मदारी-साँप, बन्दर, भालू आदि तमासा दिखलानेवाले। मलल.."लाए ! तक मूल में नहीं है । यह अनुवादक ने अपनी ओर से लगा दिया है जिसे पुकारकर मदारी लोग दर्शकों को अपना व्यवसाय बतलाते हैं। ३-४-तन्त्र ( राजधर्म, औषधि ) और युक्ति ( न्याय, उपाय ) सब जानते है और मंडल (राष्ट्रमंडल, माहेंद्रादि .यंत्रों का मंडल ) को अच्छी प्रकार समझकर बनाते हैं तया मंत्र ( मंत्रणा, गारुड़ादि मंत्र) को रक्षा से राजा और सर्प का उपचार (सेवा, क्रीड़ा) करते हैं। यहाँ रूपकालंकार तथा श्लेष है। ५-आकाश मे देख कर जब पात्र ऐसा नाट्य करता है कि मानो कोई उससे कुछ पूछ रहा है और वह उसका उत्तर देता है तब उस कथोपकथन को आकाशभाषित कहते हैं ! 'अप्रविष्टः सहालापो भवेदाकाशभाषणम्' लक्षण है। , १५-मदारी अब दूसरे पुरुष से बात करता है। पहला राजसेवक था और यह दूसरा साधारण रास्ते पर से जाता हुआ पुरुष है, बो मदारी को राक्षस का घर दिखनाने को लाया गया है। .. २७-३०-चाणक्य और राक्षम दोनों ऐसे नीतिधुरंधर हैं कि यह पता नहीं लगता कि इस नीति युद्ध में किसकी विजय होगी और चाणक्य-रक्षित चंद्रगुप्त या राक्षस-रक्षित मलयक्तु राज्य करेगा। २८-३१-चाणक्य ने यद्यपि चंचला लक्ष्मी को मौर्य -कुल में स्थिर रखने के लिये बुद्धिरूपी डोरी से बाँध रखा है पर राक्षस उसे अनेक षड्यन्त्रों के उपायरूपी हाथो से अपनाने के लिए अपनी ओर खींच रहा है । बुद्धिरूपी डोरी और उपायरूपी हाथ दो रूपक हैं । मोय कुल में राज्यलक्ष्मी का बंधन और राक्षस द्वारा आकर्षण उत्प्रेक्षा है। अनुवाद में दूसरा रूपक नहीं आया है। ३२-३३-नंदकुल की राज्यलक्ष्मी इस संशय में पड़ी हुई है कि वह इन दो नीतिज्ञ मंत्रियों-चाणक्य और राक्षस-में किसका पक्षा भवलम्बन करे। इस वाक्य में भी उत्प्रेक्षा है।