११४ मुद्राराक्षस नाटक गारकन्या विषमयी कृता । गच्छवासादिभिर्हति तस्यारत्वेत्सरीक्ष- णाम् ।। तन्मस्त कस्य सस्पर्शान्लायेत पुष्पपल्लवौ। [वागभट्ट राक्षस ने चंद्रगुप्त को मारने के लिए विषकन्या भेजा था पर चाणक्य ने उसे पर्वतक के पास भेजकर उसे मार डाला, जिसमें उसे आधा राज्य न देना पड़े । चाणक्य का ध्येय राक्षस को मिनाना तथा चंद्रगुप्त को पूर्ण नंद राज्य का स्वामी बनाना ही था, इसीसे उसने पर्वतक को मारने का अभियाग राक्षस पर लगाया और भागुरायण द्वारा उसके पुत्र को भगा दिया। चाणक्य ने यहा सोचकर कि राक्षम पर पर्वतक- वध का अपयश बना रहे, मलयकेतु को नहीं पड़ा था और आगे चनकर इसी की सहायता से दोनों में विरोध कराया। ७...२-पहले यह पाठ था कि "पर एकान्त में राक्षस ने मलय.. केतु के जी में यह निश्चय करा दिया है कि तेरे पिता को मैंने नहीं "मारा, चाणक्य ही ने मारा।" मूल यह है "पिता ते चाणक्येन घातित इति रहसि त्रायित्वा भागुरायणेनावाहितः पर्वतकपुत्रो मलय केतुः।" साथ ही पृ० ४६ पं० २८४-२८७ में भागुरायण है उससे..भाग चलो' पाठ रहने से यह पाठ बदलना उचित जान पड़ा। - ८१-अन्वेषण-खोज या जाँच करना। ८१-८२-हिंदी-पाठ यों है वैसे ही भद्रभटादिकों को बड़े बड़े पद देकर चंद्रगुप्त के पास रख दिया है। संस्कृतपाठ-तत्तत्कारणमु- त्पाद्य कृतकृत्यतामापादिताश्चंद्रगुप्तसहोत्थानियो । भद्र भटप्रभृतयः " प्रधानपुरुषा:-है। इसका अर्थ हुआ-चंद्रगुप्त के साथही उन्नति प्राप्त करने वाले भद्रभट आदि प्रधान पुरुषों से अभीष्ट लाभ कराने : के लिए तदनुकूल कारण पैसाकर उसे सिद्ध किया । तत्तत्कारण मुत्पाद्य । का तात्पर्य है कि वे कारण पैदा करके अर्थात् जिससे भद्रभट आदि मलयकेतु से मिल सकें । उत्साद्य से कारणों का वास्तविक न । सोना सूचित होता है। पृष्ठ ४५-४६ के चाणक्य ने भद्रभटादि के विरक्ति का तथा वे किस प्रकार मलयकेतु के यहाँ चले गये थे, इस सब का उल्लेख किया है। भरने कार्य में मद्यपानादि के कारण दत्तचित्त न रहने का दोष लगाकर उन्हें निकालना ही अनुकूल कारण :
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