पृष्ठ:मुद्राराक्षस.djvu/१८

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नाटक के कथावस्तु का निर्वाह भी विवेचनीय है। इसका प्रासंगिक कथावस्तु सर्वदा गौण तथा आधिकारिक कथावस्तु की सौंदर्य -वृद्ध में महाया रहा। इसके दृश्य और घटनाक्रम ऐसी बुद्धिमानी और कुशलता से सङ्गठित किए गए हैं कि वे कहीं उखड़े से या असंबद्ध नहीं ज्ञात होते। कथावस्तु का प्रारम्भ, मध्य की अवस्थाएँ तथा अन्त भी बड़ी योग्यता से रखे गए हैं, जिससे वे कहीं बेडौल या भद्दे नहीं मालूम पड़ते। प्रथम अङ्क में चाणक्य का आकर कुछ पूर्वेतिहास कहना और नाटक का उद्देश्य बतलाना तथा उसी के साथ ही राक्षस की मुद्रा की प्राप्ति उसे फंसाने का प्रबन्ध करना दिखलाकर दर्शकों को नाटक की घटना का पूरा ज्ञान करा दिया गया। इसके अनन्तर द्वितीय अङ्क में राक्षस के प्रयत्नों का निष्फल होना तथा तय अङ्क में चन्द्रगुप्त और चाणक्य का झूठा झगहा दिखलाना उद्देश्य पूर्ति का यत्न है। चतुर्थ और पंचम अङ्क में मलयकेत का राक्षस के अति शंकोत्पत्ति से लेकर अन्त में सत्य कलह दिखलाना प्राप्त्याशा है । छठे में गदस का वधस्थान को जाना नियताप्ति और सातवे में मंत्रित्व ग्रहण करना फलागम है।

इस प्रकार विवेचना करने पर स्पष्ट ज्ञान होता है कि मुद्राराक्षस रूपक का प्रथम भेद नाटक है और नाट्यकला के अनुसार नाटकके सभी लक्षणों मे युक्त है।

७--नाटकीय कथावस्तु का समय

नन्दवंश के नाश, चन्द्रगुप्त के राज्याधिकार, पर्वतक और सर्वार्थसिद्धि के मारे जाने तथा राक्षन के मलयकेतु के गस चले जाने से लेकर उसके फिर से चन्द्रगुप्त का मन्त्रित्व ग्रहण करने तक लगभग एक वर्ष का समय व्यतीत हुश्रा या। चतुर्थ श्रङ्क पंक्ति ४५-४६ में मलयकेतु का कथन है कि श्राज पिता को मरे दस महीने हुए और पर्वतक के मारे जाने के बाद ही राक्षस मलयकेत के पास गया था। नाटक का प्रारंभ उस दिन से होता है जब जीवसिद्धि, पर्वतक पर विषकन्या के प्रयोग करने के दण्ड में राज्य से निर्वासित किया ..ता है और यह दन्ड पर्व तक के घात के दो ही चार दिन के अनन्तर दिया गया होगा। जिस दिन मलयकेतु ने पूर्वोक्त बात कही थी, उस दिन मार्ग-