पृष्ठ:मुद्राराक्षस.djvu/१५५

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___राक्षस--(देखकर भाप ही आप ) अरे यह फाँसी क्यों लगात है १ निश्चय कोई हमारा सा दुखिया है। जो हो, पूछे तो सही (प्रकाश ) भद्र, यह क्या करते हो ? · पुरुष-(रोकर ) मित्रों के दुःख से दुःखी हो कर हमारे ऐसे मंदभाग्यों का जो कर्तव्य है ? राक्षस-(आप ही आप ) पहले ही कहा था कि कोई हमारा स दुखिया है। (प्रकाश) भद्र! जो अति गुप्त वा किसी विशेष १६. कार्य की बात न हो तो हमसे कहो कि तुम क्यों प्राण त्या करने हो। पुरुष -आर्य ! न तो गुप्त ही है, न कोई बड़े काम की बात है परन्तु मित्र के दुःख से मैं अब छन भर भी ठहर नहीं सकता। राक्षस-आप ही आप दुःख से ) मित्र की विपत्ति में हम परा लोगों की भाँति उदासीन होकर जो देर करते हैं, मानों इसमें शीघ्रर करने की, यह अपना दुःख कहने के बहाने, शिक्षा देग है । (प्रकाश भद्रे ! जो रहस्य नहीं है तो हम सुना चाहते हैं कि तुम्हारे दुःख व क्या कारण है ? ___ पुरुष-आपको इसमे बड़ा ही हठ है तो कहना पड़ा । इस १७ नगर में जिष्णुदास नामक एक महाजन है। __राक्षस -( आप ही भाप ) वह तो चंदनदास का बड़ा मित्र है (प्रकट ) उसे क्या हुआ ? पुरुष-वह हमारा प्यारा मित्र है। राक्षस-(श्राप ही पाप ) कहता है कि वह हमारा प्यारा मि है। इस अति निकट संबध से इसको चंदनदास का वृत्तांत ज्ञ। होगा । (प्रगट ) भद्र ! उसके विषय में क्या हुआ ? - पुरुष-(रोकर) सो दीन जनों को सब देकर वह अब अग्नि-प्रवे करने जाता है। यह सुन कर हम यहाँ आये है कि इस दुःख-वा सुनने के पूर्व ही अपना प्राण दे दें।