पृष्ठ:मुद्राराक्षस.djvu/१४०

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पंचम अंक . सिद्धार्थक-प्रार्थ! मैं नहीं जानता। भागुरायण-धूर्त ! लेख लेकर जाता है और यह नहीं जानता कि किसने लिखा है और संदेशा किससे कहेगा ? सिद्धार्थक--(डरते हुए की भाँति ) आपसे । भाशुरायण--क्यों रे ! हम से ? सिद्धार्थक-आपने पकड़ लिया । हम कुछ नहीं जानते कि क्या भागुरायण-क्रोध से) अब जानेगा | भद्र भासुरक! इसको बाहर ले जाकर जब तक यह सब कुछ न बतलावै तब तक खूब मारो। पुरुष-जो आज्ञा! (सिद्धार्थ क को बाहर लेकर जाता है और हाथ में एक पेटी लिए फिर आता है ) मार्य ! उसको मारने के समय उसके बगल में से यह मुहर की हुई पेटी मिर पड़ी। - मावशायण--( देखकर ) कुमार ! इस पर भी राक्षस की मुहर २०० मलयकेतु-यही लेख अशून्य करने को होगा। इसको भी मुहर बचाकर हमको दिखलामो। भापुरायण-(पेटी खोलकर दिखलाता है)। मलयकेतु-अरे ! ये तो वही सब आभरण हैं जो हमने राक्षस को भेजे थे। निश्चय यह चंद्रगुप्त को लिखा है। भागुरायण-कुमार ! अभी सब संशय मिट जाता है। भासुरक ! उसको और मारो। पुरुष-जो माज्ञा। (बाहर जाकर फिर आता है ) आर्य ! हमने उसको बहुत मारा है, अब कहता है कि अब हम कुमार से सब कह देंगे। मलयकेतु-प्रच्छा , ले आयो। पुरुष-नो कुमार की आज्ञा (बाहर जाकर सिद्धार्थ क को ले कर पाता है)। सिद्धार्थक-- (मलयकेतु के पैरों पर गिरकर ) कुमार ! हमको अभयदान दीजिए।