१४० मुद्राराक्षस नाटक करभक-तब चाणक्य दुष्ट ने सब लोगों के नेत्र के परमानंद-१३० दायक उस उत्सव को रोक दिया और उसी समय स्तनकलस ने ऐसे ऐसे श्लोक पढ़े कि राजा का भी मन फिर जाय । राक्षस-कैसे श्लोक थे? करभक-जिन को विधि सब पढ़ता है )। राक्षस-वाह मित्र स्तनकलस। वाह ! क्यों न हो! अच्छे समय में भेदबीज बोया है, फल अवश्य होगा। क्योंकि- नृप रूठे अचरज कहा सकल लोग जा संग। छोटे हू मानें बुरो परे रंग में भंग ॥ मलयकेतु-ठीक है ( 'नृर रू? यह दोहा फिर पढ़ता है ) राक्षस-हाँ, फिर क्या हुआ ? करमक-जब आज्ञाभंग से रुष्ट होकर चंद्रगुप्त ने आपकी बड़ी प्रशंसा की और दुष्ट चाणक्य से अधिकार ले लिया। ___ मलयकेतु-मित्र भ'गुगरण ! देखो प्रशंसा करके राक्षस में चंद्रगुप्त ने अपनी भक्ति दिखाई। भागुरायण--गुण-प्रशंसा से बढ़कर चाणक्य का अधिकार लेने से। . · राम-क्यों जी, एक कौमुदी महोत्सव के निषेध ही से चाणक्य चंद्रगुप्त में बिगाड़ हुआ कि कोई और कारण भी है ? ___ मलकेतु-वयों मित्र भागुरायण ! अच और बैर में यह क्या फल निकलेंगे ? ___ भारायण-यह फल निकाला है कि चाणक्य ड़ा बुद्धिमान है, वह व्यर्थ चंद्रगुप्त को क्रोषित न करावेगा और चंद्रगुप्त भी उसकी बातें जानता है, वह भी बिना बात चाणका का ऐसा अपमान न करेगा, इससे उन लोगों में बहुत झगड़े से जो बिगाड़ होगा तो पक्का होगा। परमक-आर्य ! और भी कई कारण हैं। ___ राक्ष-कोन!
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