पृष्ठ:मुद्राराक्षस.djvu/११६

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तृतीय अंक तेहि हम जो कछु टारही सोठ तुव हित-उपदेश । . ___जासों तुमरो विनय गुन जग में बढ़े नरेश ! ।। चंद्रगुप्त-और जो दूसरा प्रयोजन है वह भी सुनें । चाणक्य-वह भी कहता हूँ। चंद्रगुप्त-अहिए। चाणक्य-शोणोत्तरे ! अचलदत्त कायस्थ से कहो कि तुम्हारे पास जो भद्रभट इत्यादि का लेखपत्र है वह मांगा है। प्रती०-जो आज्ञा (बाहर से पत्र लाकर देती है)। चाणक्य-वृषल ! सुनो। चंद्रगुप्त-मैं उधर ही कान लगाये हूँ। चाणक्य-पढ़ता है ) स्वस्ति परम प्रसिद्ध नाम महराज श्री चंद्रगुप्त देव के साथी जो अब उसको छोड़कर कुमार मलपोतु के आश्रित हुए हैं उनका यह प्रमाण पत्र है । पहजा गजाध्यक्ष भद्रभट, अश्वाध्यक्ष पुरुषदत्त, महाप्रतिहार चंद्रभानु का भांजा हिंगुरत, महा. राज के नातेदार महाराज बलगुप्त, महाराज के लड़कपन का सेवक रानसेन, सेनापति सिंहबलदत्त का छोटा भाई भागुरायण, मालव के राजा का पुत्र रोहिताक्ष और क्षत्रियों में सबसे प्रधान विजयवर्मा- (श्राप ही आप ) ये हम सब लोग महाराज का काम सावधानी से साधते हैं (प्रकारा ) यही इस पत्र में लिखा है। सुना ? . २७० ___ चंद्रगुप्त -प्राय ! मैं इन सबों के उदास होने का कारण सुनना चाहता हूँ। चाणक्य -वृषल ! सुनो, वे जो गजाध्यक्ष और अश्वाध्यक्ष थे वे रात दिन मद्य, खी और जुए में डूब कर भपने काम से निरे बेसध इते थे, इससे मैंने उनसे अधिकार लेकर केवल निर्वाह के योग्य निकी जीवका कर दी थी। इससे उदास होकर वे कुमार मलयकेतु • पास चले गए और वहाँ अपना अपना कार्य सुनाकर फिर उन्हीं दों पर नियुक्त हुए हैं। हिंगुरात और ब.लगुप्त ऐसे लालची है कि कतना भी दिया परन्तु मारे लालच के कुमार कलमकेतु के पास इस म से जा रहे कि वहाँ बहुत मिलेगा।राजसेन जो लड़कपन का २६०