पृष्ठ:मुण्डकोपनिषद्.djvu/६६

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मुण्डकोपनिषद् [मुण्डक २ और एक रसना- सप्त इमे लोका येषु चरन्ति प्राणा गुहाशया निहिताः सप्त सप्त ॥ ८ ॥ उस पुरुषसे ही सात प्राण ( मस्तकस्थ सात इन्द्रियाँ ) उत्पन्न हुए हैं । उसीसे उनकी सात दीप्तियाँ, सात समिधा (विषय ), सात होम ( विषयज्ञान ) और जिनमें वे सञ्चार करते हैं वे सात स्थान प्रकट हुए हैं । [ इस प्रकार ] प्रति देहमें स्थापित ये सात-सात पदार्थ [ उस पुरुषसे ही हुए हैं ] ॥ ८॥ सप्त शीर्षण्याः प्राणास्तस्मा [ दो नेत्र, दो श्रवण, दो घ्राण -ये] सात देव पुरुषात्प्रभवन्ति । तेषां च मस्तकस्थ प्राण उसी पुरुषसे उत्पन्न सप्तार्चिषो दीप्तयः स्वविषयाव- होते हैं । तथा अपने-अपने विषयों- | को प्रकाशित करनेवाली उनकी द्योतनानि । तथा सप्तसमिधः सात दीप्तियाँ, सात समिध- उनके सात विषय, क्योंकि प्राण सप्त विषयाः, विषयेहि समि- ( इन्द्रियवर्ग ) अपने विषयोंसे ही ध्यन्ते प्राणाः । सप्त होमास्तद्वि- समिद्ध (प्रदीप्त) हुआ करते हैं । सात होम अर्थात् अपने विषयोंके विज्ञान, षयविज्ञानानि “यदस्य विज्ञानं जैसा कि "इसका जो विज्ञान है । उसोको हवन करता है" इस अन्य तज्जुहोति" (महानारा०२५ । १) श्रुतिसे सिद्ध होता है, [ ये सब इति श्रुत्यन्तरात् । इस पुरुषसे ही प्रकट हुए हैं ] । किं च सप्तमे लोका इन्द्रिय तथा ये सात लोक-इन्द्रिय- स्थानानि येषु चरन्ति सञ्चरन्ति स्थान, जिनमें कि ये प्राण सञ्चार करते हैं। जिनमें प्राण सञ्चार प्राणाः । प्राणा येषु चरन्तीति करते हैं' यह प्राणोंका विशेषण प्राणानां विशेषणमिदं प्राणापा- | [उनके प्रसिद्ध अर्थ] प्राणापानादि-