मुण्डकोपनिषद् [मुण्डक २ प्रजास्ता अपि तस्मादेव पुरुषा- | उस पुरुषसे ही उत्पन्न होती हैं- यह बात अगले मन्त्रसे बतलायी त्प्रजायन्त इत्युच्यते- जाती है- अक्षर पुरुषसे चराचरकी उत्पत्तिका क्रम तस्मादग्निः समिधो यस्य सूर्यः सोमात्पर्जन्य ओषधयः पृथिव्याम् । पुमान्रेतः सिञ्चति योषितायां बह्वीः प्रजाः पुरुषात्सम्प्रसूताः ॥५॥ उस पुरुपसे ही, सूर्य जिसका समिधा है वह अग्नि उत्पन्न हुआ है । [ उस धुलोकरूप अग्निसे निष्पन्न हुए ] सोमसे मेघ और [ मेघसे ] पृथिवीतलमें ओषधियाँ उत्पन्न होती हैं । पुरुष स्त्रीमें [ ओषधियोंसे उत्पन्न हुआ ] वीर्य सींचता है। इस प्रकार पुरुषसे ही यह बहुत-सी प्रजा उत्पन्न हुई है ॥ ५॥ तस्मात्परमात्पुरुषात्प्रजावस्थान उस परम पुरुषमे प्रजाका अवस्थाविशेषरूप अग्नि उत्पन्न विशेषरूपोऽग्निः। स विशेष्यतेः हुआ । उसकी विशेषता बतलाते समिधो यस्य सूर्यः समिध इव हैं—सूर्य जिसका समिधा (इन्धन) है-[ अग्निहोत्रके] समिधाके समिधः । सूर्येण हि धुलोकः समि- समान ही समिधा है, क्योंकि सूर्यसे ध्यते । ततो हि द्युलोकान्निष्पन्नात ही धुलोक समिद्ध ( प्रदीप्त ) होता सोमात्पजन्यो द्वितीयोऽग्निः है । उस द्यलोकरूप अग्निसे निप्पन्न हुए सोमसे [पञ्चाग्नियोंमें ] दुसरा सम्भवति । तस्माच्च पर्जन्यात अग्नि मेघ उत्पन्न होता है । फिर ओषधयः पृथिव्यां सम्भवन्ति । उस मेघमे पृथिवीतलमें ओपधियाँ उत्पन्न होती हैं । पुरुषरूप अग्निमें ओषधिभ्यः पुरुषाग्नी हुताम्य हवन की हुई वीर्यकी कारणरूप उपादानभूताभ्यः। पुमानग्नी रेतः ओपधियोंसे [ वीर्य होता है ] । उस
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