अथमा मुण्डकु प्रथम खण्ड सम्बन्धभाष्यम् उपक्रमः ॐ ब्रह्मा देवानामित्याद्या 'ॐ ब्रह्मा देवानाम्' इत्यादि [ वाक्यसे आरव्य होनेवाली ] थर्वणोपनिषत् । अस्याथ उपनिषद अथर्ववेदकी है । श्रुति विद्यासम्प्रदायकर्तपार- इसकी स्तुतिके लिये इसके विद्या- सम्प्रदायके कर्ताओंकी परम्परारूप म्पर्यलक्षणसम्बन्धम् आदाववाह सम्बन्धका सबसे पहले स्वयं ही स्वयमेव स्तुत्यर्थम् । एवं हि वर्णन करती है । इस प्रकार यह दिखलाकर कि 'इस विद्याको महद्भिः परमपुरुषार्थसाथनन्वेन परमपुरुषार्थके माधनरूपसे महा- पुरुषोंने अन्यन्त परिश्रममे प्राप्त गुरुणायासेन लब्धा विद्येति किया था' श्रुति श्रोताओंकी बुद्धिम श्रोतबुद्धिप्ररोचनाय विद्यां मही- इसके लिये रुचि उत्पन्न करनेके लिये इसकी महत्ता दिखलाती है, करोति । स्तुत्या प्ररोचितायां जिससे कि लोग स्तुतिके कारण रुचिकर प्रतीत हुई विद्याके हि विद्यायां सादराःप्रवर्तेरनिति । उपार्जनमें आदरपूर्वक प्रवृत्त हों। प्रयोजनेन तु विद्यायाः अपने प्रयोजनके साथ ब्रह्म- ब्रह्मविद्यायाः साध्यसाधनलक्षण- विद्याका साध्यसाधनरूप सम्बन्ध सम्बन्धम् उत्तरत्र निरूपणम् वक्ष्यति 'भिद्यते आगे चलकर 'भिद्यते हृदयग्रन्थिः' हृदयग्रन्थिः' (मु०उ०२ । २।८) इत्यादि मन्त्रद्वारा बतलाया जायगा । मम्बन्धप्रयोजन-
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