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मिश्रबंधु

प्राचीन कविगण

के श्राप राजकवि थे । इनके वंशधर मैंझौली राज्याश्य में अभी मौजूद हैं । इनकी कविताएँ प्रसाद-गुणालंकृत हुआ करती थीं। आपकी रचनाओं का समावेश ग्रंथ के आकार में अभी तक नहीं हुआ है। सुना जाता है, आपके पौत्र पं० उमेशचंद्र वाजपेयीजी शीघ्र ही इस प्रशंसनीय कवि की कृतियों को इकट्ठा कर एक पुस्तका- कार संस्करण में निकालनेवाले हैं । यह कवि महाशय तथा ऊपर दिए हुए इनके ग्रंथ का नाम हमको पं० वालमुकुंद पांडेय, गोरखपुर द्वा. ज्ञात हुए उदाहरण- एक तो असील होय, दृजै नैन सील होय, तीजे बने डील होय, चौथे चोप ठानेगो पाँचवे प्रवीन होय,। छठवें छली न होय, सातवें शरम, ग्राठे शोज उर थानेगो। कहै 'शिवराज नेति नवमें निगाह राखें, दसवें दिमाग, गुन ग्यारे पहिचानेगो; वारहें निमल बुद्धि, तेरहें तरहदार, चौदहें चतुर ताहि गुनी जन मानेगी। नाम-(१८३०) ब्रजेंद्र, भरतपुर । ग्रंथ-रसानंद ( व्रजेंद्रप्रकाश)। रचना-काल-सं. १८६१ । विवरण-संभवतः यह कवि भरतपुर के राज्य-शासकों में ले थे। अंथ नायिका-भेद पर है। नाम- -( ) गंगाधर प्रधान । ग्रंथ-श्रादिपुराण । रचना-काल-सं० १८१२। १८१ १थ