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मिश्रबंधु

प्राचीन कविगण ६६ . इसी कुल में उत्पन्न कोई दुलीचंद क्षत्रिय के यह कवि आश्रित थे। महाशय भालेरावजी कहते हैं कि इन कवि का वंश अद्यावधि वर्तमान है। नाम--(१०१७) शाहमुनि ( मुसलमान ), शाहगढ़, निजाम-स्टेट । -सं० १८३५ के लगभग । ( भालेरावजी से प्राप्त) ग्रंथ-~-(१) सिद्धांत-बोध (ग्रकाशित), (२) स्फुट कविताएँ। नाम-(१९३२) जीवनविजय, राजकोट (काठिया- काल- वाड़)। काल-सं० १८३८ । अंथ-(१)जीवनी बावनी, (२) महिरामनजी का कसुवा । विवरण-श्राप श्वेतांवरी जैन साधु धनविजय के शिष्य तथा राजकोट के ठाकुर श्रीमहिरामनजी के श्रावित कवि थे। आपने उक्त मकुर साहब को 'प्रवीन-सागर' नामक ग्रंथ बनाने में सहायता दी थी। आपका पहला नथ सवैयों में है, तथा दूसरा गद्य-पय में रचा हुश्रा है। - उदाहरण- वावन ही मात्रन के सवही सवैया कीने, नई-नई उकुति चतुर मन-भावनी; जेहि कवि पड़े ताकी बुद्धि को प्रकास होत, राजनीति बात जो है सर्वकु सुहावनी । अन्योकति केते हैं दृष्टांत हू के केते लसे, श्लेपर प्रस्ताव यह चाल समुझावनी; श्वेतांवर जैन धनविजय विराजमान, ताको सिप्य 'जीवन' ने कीनी यह बावनी ।