पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद ४.pdf/७०

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
७०
७०
मिश्रबंधु

मिश्रबंधु-विनोद तथा गुजराती भापाओं में भी आपने स्फुट छंद बनाए हैं। आपका उक्त ग्रंथ ग्वालियर-निवासी महाकवि सुंदरजी के सुंदर-गार ग्रंथ के दंग पर है। उदाहरण- कीनो लखपति कच्छपति, भले सुनो कवि-भूप, सुंदर-कृत अनुरूप यह रस-तरंग रस-रूप । महाराउ लखपति कियो शुभ लखपति शृगार, रच्यो देखि रस-मंजरी सकल रसन को सार । जहाँ-तहाँ मिटि गयो अंगराग बिदा भयो, वदन बिदारि दियो वेदी को बनाउ है; टूटि गए हार, बार छूटि के विथुरि गए, जहाँ-तहाँ गिरे तहाँ त्यों ही हाथ-पाठ है। बुलाई न बोले हग मूंदे उर प्रीतम के, तेरे आप जानि परै बामें मान पाउ है; दूरी तें तो प्यारी ऐसी लागी है उजारी मोंको, शेप के बिछौना माँझि सोने को निषाउ है। नाम-(६६) आशाधर । ग्रंथ-सहस्रनाम । रचना-काल-सं० १८११ । विवरण-ग्रंथ में विविध प्रकार के छंद हैं। नाम-( ६ ) रूपदास, घसोई (मालवा)। ग्रंथ-(१) गोपाल-चरित्र, (२) रसोई-लीला । रचना-काल- विवरमा- - शुद्ध माल्वी है। नाम-(4) शुभचंद्र। ग्रंथ-श्रोणिक-चरित्र ।