उत्तर नूतन इंट्रेस तक पाई है। बहुत दिन तक राना साहब खजूरगांव के यहाँ "सरवराहकार रहे, अब घर पर जमीदारी का प्रबंध करते हैं। उदाहरण- ऊया मातु गोद के निंदौरे परभात वाल , उठिए गिरीश' मन मोद उपजाइए। पक्षी गण गाय औ' बजाय बेनु पौन तुम्हें ताल दै जगावत हे लाल, जग जाइए। कमल-खिलौना औ' दिठौना चंचरीक चार, झाँगुली नवल टोप रश्मियाँ सजाइए; प्रकृति सुरम्यता सुकुर-प्रतिविद पेखि किलकि-किलकिकर तालियाँ बजाइए। नाम-(४२८) पं० चंद्रशेखर मिश्र 'अशेष' । विवरण- ---आपका जन्म कार्तिक कृष्ण १४, संवत् १९९५ में, माम रायपुर, तहसील पुरवा, जिला उन्नाव में हुआ । आपके पिता का नाम पं० गदाधरप्रसादजी मिश्र है । आप कान्यकुब्ज ब्राह्मण हैं। प्रथम आपको उर्दू भाषा की शिक्षा दी गई, और भगवंत- नगर-स्कूल, जिला उन्नाव से उर्दू मिडिल की परीक्षा सन् १९१२ ई० में पास की, परंतु अँगरेजी-शिक्षा हिंदी और संस्कृत लेकर स्पेशल क्लास से प्रारंभ की, और सन् १९१८ ई० में स्कूल- लीविंग-परीक्षा गवर्नमेंट-हाईस्कूल, रायबरेली से पास की, और सेकिंड इयर एक्० ए० की परीक्षा सन् १९२० ई० में कैनिंग- कॉलेज, लखनऊ से दी। संवत् १९७३ में हिंदी साहित्य-सम्मेलन की प्रथमा परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण होकर पुरस्कार प्रास किया । सन् १९२३ से डिस्ट्रिक्ट-बोर्ड-ऑफिस, रायबरेली में नौकर हैं, और इस समय एकाउंटेंट के पद पर नियुक्त हैं। कविता द्वारा परमात्मा का भजन करना ही आपका लक्ष्य है।
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मिश्रबंधु