पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद ४.pdf/६६२

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
६६२
६६२
मिश्रबंधु

उत्तर नूतन इंट्रेस तक पाई है। बहुत दिन तक राना साहब खजूरगांव के यहाँ "सरवराहकार रहे, अब घर पर जमीदारी का प्रबंध करते हैं। उदाहरण- ऊया मातु गोद के निंदौरे परभात वाल , उठिए गिरीश' मन मोद उपजाइए। पक्षी गण गाय औ' बजाय बेनु पौन तुम्हें ताल दै जगावत हे लाल, जग जाइए। कमल-खिलौना औ' दिठौना चंचरीक चार, झाँगुली नवल टोप रश्मियाँ सजाइए; प्रकृति सुरम्यता सुकुर-प्रतिविद पेखि किलकि-किलकिकर तालियाँ बजाइए। नाम-(४२८) पं० चंद्रशेखर मिश्र 'अशेष' । विवरण- ---आपका जन्म कार्तिक कृष्ण १४, संवत् १९९५ में, माम रायपुर, तहसील पुरवा, जिला उन्नाव में हुआ । आपके पिता का नाम पं० गदाधरप्रसादजी मिश्र है । आप कान्यकुब्ज ब्राह्मण हैं। प्रथम आपको उर्दू भाषा की शिक्षा दी गई, और भगवंत- नगर-स्कूल, जिला उन्नाव से उर्दू मिडिल की परीक्षा सन् १९१२ ई० में पास की, परंतु अँगरेजी-शिक्षा हिंदी और संस्कृत लेकर स्पेशल क्लास से प्रारंभ की, और सन् १९१८ ई० में स्कूल- लीविंग-परीक्षा गवर्नमेंट-हाईस्कूल, रायबरेली से पास की, और सेकिंड इयर एक्० ए० की परीक्षा सन् १९२० ई० में कैनिंग- कॉलेज, लखनऊ से दी। संवत् १९७३ में हिंदी साहित्य-सम्मेलन की प्रथमा परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण होकर पुरस्कार प्रास किया । सन् १९२३ से डिस्ट्रिक्ट-बोर्ड-ऑफिस, रायबरेली में नौकर हैं, और इस समय एकाउंटेंट के पद पर नियुक्त हैं। कविता द्वारा परमात्मा का भजन करना ही आपका लक्ष्य है।