मिश्रबंधु-विनोद सं० १९८३ चम 3 उदाहरण- कोटिन अनंग छबि देख के निसार होय, कोटिन तरनि दुति मुकुट छाई है ; नीलोत्पल सम लोचननि की विशाल शुचि, पाँति पै रदों की प्रभा हीरों की लजाई है। विहँसि विचित्र जिमि ऊषा की किरन होय, तिरछी चितौनि चित माँझ में समाई है अनुपम श्रामा रघुराज साज श्रानन की, शांति-प्रदायिनी औ' संत सुखदाई है। नाम--(४५०० ) रामेश्वरप्रसाद 'राम', बाढ़ (पटना) जन्म-काल-सं० १९९८ । उदाहरण- चाह नहीं है, रायबहादुर बनकर मैं इतराऊँ; चाह नहीं है, बड़ों-बड़ों से सजकर हाथ मिलाऊँ । चाह नहीं है, लंदन जाकर मैं मिस्टर बन पाऊँ, चाह नहीं है, बड़े लाट का मैं मेंबर बन जाऊँ। चाह यही है, जीवन-पथ में राग-द्वेष से दूर रहूँ, चाह यही है, हिंद-देश की सेवा में भरपूर रहूँ। चाह नहीं है, नेता बनकर सभा-भवन. में जाऊँ चाह नहीं है, जनता की मैं पूजा शीश चढ़ाऊँ। चाह नहीं है, कपट हृदय से त्यागवीर कहलाऊँ, चाह नहीं है, योगी बनकर तन में भस्म रमाऊँ। चाह यही जीवन की मेरे, दीनों का उद्धार करूँ; चाह यही है,भारत मा का हिल-मिल बेड़ा पार करूँ। नाम-(४५०१) सत्यनारायणसिंह, खुटाही. पारू,
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मिश्रबंधु