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मिश्रबंधु

सं० ११08 उत्तर नूतन X x जीवन-तरणी भव-सागर में खेच रही थी जब सुख मान; लिया छीन पतवार प्रेम का हाय ! किया जीवन बलिदान । x आज तुझे पा अपने कर में मन की साध सिटाऊँगी श्याम • सहचरी सौतिन मेरी यम-पुर तुझे पठाऊँगी। फिर भी श्याम संग बिहरूँगी प्रेम-राज्य में बनी स्वतंत्र :- प्रेम हमारा सर्वस होगा, प्रेम बनेगा जीवन-मंत्र। नाम-~(४३६२)वालकृषण राव। जन्म-काल- लगभग सं० १९६७ ॥ रचना-काल-सं० ११EET ग्रंथ कौमुदी ( १९८८)। विवरण-श्राप युक्तमांत के प्रसिद्ध राजनीतिक नेता श्रीमान् चिंतामणिजी के सुपुत्र हैं। मदरासी होकर भी हिंदी की अच्छी कविता करते हैं। बहुत विशद होनहार कवि तथा लेखक हैं। उदाहरण- तुम्हारी वह मधुमय सुसकान, बनाया जिसने मुझको भ्रांत; वही फिर कर सकती है श्राज कष्टदायी विरहानल हमारी श्राशा अनुरूप प्राणधन, होवे शुभ संयोग . उसी स्वर्गिक सुख-प्राति निमित्त किया करते वियोग का योग । समय-संवत् १६६ नाम- -( ४३६३) रमेशचंद्र मिश्र 'श्याम'। जन्म-काल-सं० १९६६ । शांत ।