पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद ४.pdf/५५८

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
५५८
५५८
मिश्रबंधु

सं. १९८२ उत्तर नूतन $ उदाहरण- तम व्योम व्यारी तब तक निशा का ठहरता, दिशाएँ दीक्षात्मा जब तक न तिग्मांशु करता। प्रयत्नोत्साहों की पवन यदि होवे भटकती, घटा चिंताओं की हृदय-नभ में तो न टिकती। लखी थी वैदेही कुशल कपि ने यद्यपि नहीं, उन्हें भासा तो भी निकट ज्यों यह कहीं। छिपी भावी बातें हृदय दिखलाता विशद है, क्रिया में उत्साही निपुण जब होता निरत है। प्रणयों का यों हो प्लवगवर ने ध्यान धरके, तजा प्राचीरों को उछल तनु संकोच करके। वनी की दीवालों पै वह महावीर ठहरे, जहाँ शोभा देते बहुविधि लगे पादप हरे । --(४३५३) मनोरंजनप्रसाद एम० ए०, ग्राम सूर्य पुरा, जिला शाहाबाद। जन्म-काल-सं० १९५७ । रचना-काल-सं0 18२ । ग्रंथ-'राष्ट्रीय मुरली' (राष्ट्रीय कवितात्रों का एक संग्रह)। विवरण-श्राप बाबू राजेश्वरप्रसाद सबजज के सुपुत्र हैं। अव नापने डुमराँव को ही अपना निवास स्थान बना लिया है। आपने अपनी प्रखर प्रतिभा से अपने छात्र-जीवन ही में विशेष कीर्ति प्राप्त कर ली थी। बी० ए० की परीक्षा में हिंदी और अंगरेजी- 'साहित्य लेकर श्राप सर्व प्रथम होकर उत्तीर्ण हुए। आपकी हिंदी. परीक्षा लेने में हम (रायबहादुर श्यामविहारी मिश्र) ने आपके उत्तर-पन से विशेष संतुष्ट एवं प्रसन्न होकर आपको एक प्रशंसा-पन्न दिया । 'फिरंगिया' नामक प्रसिद्ध गीत के आप ही रचयिता हैं।