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मिश्रबंधु

२५० मिश्रबंधु-विनोद सं० १९८२ . रखते अटल अनुराग हो सभी के प्रति बांध रक्खा बैरियों को भी है प्रेम-जाल में । कौशलेंद्र कृशता तुम्हारी ही शरण लेती खोजती तुम्हीं को है दरिद्रता दुकाल शांति पाती है तुम्हारी छाया में निदाघ धूप, शीत छपता है मुट्टियों में शीत-काल में । उनपै अपनो मन वारिए ना, जो सनेह की जानत रीति नहीं, जहँ नेह नए नित लागे नएन सो है तहँ की कछु धीति नहीं; छल स्वारथ को है लगाव बुरो, यह प्रेम ग्रौ नेम की नीति नहीं, उनसों हित कीन्हें कहा फल है, जिनके हित की परतीति नहीं। नाम-( ४३४६ ) चंद्रमाराय शर्मा विशारद । जन्म-काल-सं० ११५७ । रचना-काल-सं० १९८२ । ग्रंथ-(१) धारा-प्रकाशिका, (२) नलोदय, (३) भारत- भारत, (४) त्रिपथगा, (५) गद्य - गमक, (६) पंचगव्य, (७) पिंगल - प्रबोध, (८) सतसई - टीका, (६) रामचंद्रिका- टीका, (१०) विचार - मीमांसा, (११) हिंदी - निरुक्त व्याकरण, (१२) विधेक-बोध, (१३) व्याकरण-बोध । विवरण-श्राप दामोदरपुर, जिला बलिया निवासी पंडित रामप्रतापराय के पुन तथा हिंदी के उत्साही लेखक हैं। नाम-( ४३५० ) जगन्नाथ मिश्र गौड़ 'कमल' वाकरगंज (पटना)। जन्म-काल-लगभग सं० १९२७ । कविता-काल-लगभग सं० १९८२ । विवरण-श्राप खड़ी बोली के सुकवि हैं।