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मिश्रबंधु

१४० मिश्रबंधु-विनोद सं० १९. गढ़ में भारी सेला और कवि-सम्मेलन होता है। इस अवसर पर स्वयं श्रीमान सभापति का आसन ग्रहण करते हैं, तथा श्रीमती महेंद्र महारानीजू देवी भी परदे की बाड़ से उपस्थित रहती हैं। सं० १९१० में काशी में पधारकर श्रीमान-ने २०००) वार्षिक का एक पारितोषिक व्रज-भाषा की सर्वोत्तम कविता के लिये स्थापित किया है। हिंदी- कविता तथा भापा पर श्रीमान का अगाध प्रेम है । स्वयं भी अच्छा काव्य लिखते हैं, तथा कविता में विशेष बोध रखते हैं । श्रीमान के एक सुपुन्न तथा तीन भाई हैं । हम (श्यामविहारी मिश्र) सं० १९८७ तथा १६८८ में श्रीमान के दीवान-रियासत रहे, और संवत् ११८ से प्रधान मंत्री ( chief adviser ) हैं। नाम-( ४३३६ ) सुशीलादेवी, मुंगेर। ग्रंथ-स्फुट कविता। विवरण -यह श्रीयुत काशीप्रसाद जायसवाल बैरिस्टर, पटना की ज्येष्ठा पुत्री हैं। इनका श्वशुरालय मुंगेर में है । इनकी कविता प्रायः भक्ति-भाव की हुआ करती है । नीचे उद्धत इनकी कविता देहरादून-साहित्य-सम्मेलन के अवसर पर पदी गई थी, और इस उपलक्ष में इन्हें एक स्वर्ण पदक प्रदान किया गया था। उदाहरण- विश्व-प्रगति के गायक बंधो, नित्य नया है तेरा गान, तरल तरंगों की तानों पर थिरक रही है जिसकी तान । मेघ-मृदंग, नदी-नद-नूपुर, वात नाद वीणा कर धार , .. सुंदर साज सजाकर नटवर, बंद किया चेतन का द्वार । सात सरों के सुख-सागर पर तैर रहा सारा संसार , शांत मुग्ध उस नील लता में उठता है मानस-उद्गार । श्रादि काल से तू गाता है, मुझको भी अब गाने दे से रागी ! ऐ चतुर गवैए ! लय में लय मिल जाने दे।