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मिश्रबंधु

सं० १९७६ उत्तर नूतन १२ गोपाल ! अपनी प्रिय धरा पर सदय शीघ्र पसीजिए, केशव! करुण क्रंदन श्रवण कर कुछ कृपा अब कीजिए। माधव! मलय-मारुत समुन्नति का बहा फिर दीजिए, हे राधिकारंजन ! स्वजन को शरण में रख लीजिए। नाम - ( ४३०८) धर्म द्रनाथ शास्त्री। जन्म-काल-स० १६५३ । रचना-काल-सं० १९७६ । ग्रंथ -(१) भारतीय तथा पाश्चात्य दर्शन, (२) उपनिषदों का सिद्धांत, (३) मुक्त धारा । विवरण-श्राप डॉक्टर केदारनाथ के पुन्न तथा मेरठ-कॉलेज में संस्कृत के प्रोफेसर हैं । श्राप योग्य वक्ता एवं लेखक भी हैं। दर्शन- शास्त्र पर आपने श्रम किया है। नाम-(५३०६ ) रामसहाय पांडेय उपनाम 'चंद्र। जन्म-काल-सं० १९६४ । कविता-काल-सं० १६७६ । जन्म-स्थान-चिनहट, जिला लखनऊ। पिता का नाम-पं. गौरीशंकरजी पांडेय । शिक्षा-साधारण हिंदी-उर्दू अँगरेज़ी । विवरण-खड़ी बोली और ब्रज-भाषा दोनो ही में अच्छी रचना उदाहरण- ब्रज-भाषा (कवित्त) भान अमंद की दुचंद दुति होन लागी, उरल उतंगन पै कंचुकी सजे लगी। गुरुता नितंबन मैं नित्य सरसान लागी, सरकति नीवी कटि-तट को तजै लगी।