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मिश्रबंधु

मिश्रबंधु-विनोद सं० १९७७ चिंतन, (४) संसार-दर्शन, (१) शिक्षा-सप्तसती, (६) आरोग्य- शतका 5 यशोगान । बंड, - जय है बढ़ा घमंड, उदाहरण--- अपनी अपक्क सति के समान करता तेरा है सत्य भले हों अंड जय बंदनीय बुंदेलखंड । गिरि चित्रकूट तेरा प्रधान- जब 'किया राम ने शोभमान ; कह उठा धन्य था अखिल अंड , बंदनीय बुंदेलखंड । श्रीवीरसिंह से दानवीर, हरदौल तुल्य वलि - वीर - धीर । चुके तेरा जय बंदनीय धुंदेलखंड। नाम-(४२६६ ) पार्वतीदेवी। रचना-काल-सं० १९७७ । ग्रंथ-स्फुट कविता। विवरण-श्राप हिंदी-संसार के प्रसिद्ध लेखक भाई परमानंद की बहिन हैं। इनका विवाह पंजाब के डॉक्टर मिलखीरामजी से हुआ था, किंतु उन डॉक्टर महाशयजी की अकाल मृत्यु हो गई । कांग्रेस कार्य के हेतु स्त्रियों के संगठन के अभियोग में इन्हें कारावास भी सहना पड़ा। अब इनके जीवन का केवल उद्देश देश तथा साहित्य-सेवा है। महाशय गदाधरप्रसादजी अंबष्ट का कथन है कि उन्होंने कर्ण कवि- कृत 'कान्यकुसुमोद्यान' में इन विदुषी की कविता देखी है । वही कविता हम यहाँ उद्धत करते हैं ।

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