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मिश्रबंधु

. सं. १६०१ उत्तर नूतन नाम-(४२५८) न्यामतसिंहजी लाला । विवरण-जैन-समाज में आपके थियाट्रिकल पर्दो की प्रशंसा है। 'आपके कतिपय पद अच्छे भी हैं। नाम--(१२५६ ) पन्नालाल सिंधी। ग्रंथ-परिवार-डिरेक्ट्री। नाम-( ४२६०) प्रवासोलाल वर्मा मालवीय, आगर मालवा-निवासी। जन्म-काल-सं० १९५४ । रचना-काल-सं०१९७५। ग्रंथ--(१) वक्ष-विज्ञान, (२) आरोग्य-मंदिर इत्यादि । विवरण- आपने मुनि, धर्माभ्युदय आदि कई पन्नों का संपादन किया है। कविता उत्साह-युक्त भावों की करते हैं। उदाहरण- पुनः हो धन्वा की टंकार । वही भुजा हैं, वहीं धनुष है और वही हैं बाण , फिर क्यों द्रोही दल बढ़ता है, कर इसका संहार । क्या कहता है ? भाई, बेटे गुरुजन प्रिय परिवार , खड़े सामने स्नेही मेरे कैसे करूँ प्रहार । छिः छिः ! यह कैसा विचार है, इसे इसी क्षण भूल , केवल कर्म सत्य है जग में, शेष सभी निस्सार । जीव देह ज्यों देह वस्त्र है सहज बदलता नित्य , मृत्यु एक परिवर्तन है, यह है शास्त्रों का सार । तेरा भाई, तेरा बेटा यदि करता हो पाप , और खड़ा तू देख रहा हो उनके अत्याचार । तव तो धर्म धंसे धरणी में ही विनष्ट कर्तव्यः हुई मोह की जय कह तुझको धिक्कारे संसार ।