पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद ४.pdf/४८३

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
४८३
४८३
मिश्रबंधु

मिश्रबंधु-विनोद सं० १९७२ पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते हैं। जन्म रामनगर, कानपुर है, पर संप्रति हरिद्वार में अध्यापक हैं । सन् १९८९ के ग्वालियर-सम्मेलन में साक्षात्कार हुआ था। वस्तुतः स्वतंत्र प्रकृति के सुयोग्य सजान, सच्चे साहित्य-सेवी सखा हैं। उदाहरण-- सुन रे कपूर ! मदचूर ! इक सीख मेरी, एतो अभिमान करि नीच नसि जाइगो; रूप में, न रंग में, बिलोकि धिन होय मन, कोढ़िया सपेद तू अछूत बनि जाइगो । क्षुद्र कीट मारिबे में शनि है प्रसिद्ध तेरी, नेकु तौ पसीज, सींक लाए जरि जाइगो, और की चलावै कौन मैं ही जो न संग होऊँ, पल मैं न जानौ कौर देश उड़ि जाइगो । जहाँ न हित उपदेस शुचि, सो कैसा साहित्य हो प्रकाश से रहित तो कौन कहै आदित्य । नाम- -(४२५०) केदारनाथ त्रिवेदी 'नवीन', ग्राम कौरैया सरावा, सीतापुर। जन्म-काल-स० १६५२ । कविता-काल-अनुमानतः सं १६७६ । प्रथ--(१) कुलीन (पद्य), (२) स्फुट कविताएँ । विवरण-यह उपमन्यु-गोत्रीय कान्यकुब्ज ब्राह्मण हैं । इनके पुत्र 'प्रवीन' भी कविता करते हैं । यह आजकल मिसवा, सीतापुर में अध्यापक हैं। उदाहरण- ऐन अँधियारी रैन कहत बनै न बैन, शिशिर-समीर-शीत वावरे करति है; .