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मिश्रबंधु

सं० १९७० मिश्रबंधु-विनोद -- ग्रंथ-(१) जयद्रथ-वध, (२) चित्रों एवं अन्य विषयों पर स्फुट रचनावली, (३) किसान, (४) पत्रावली, (५) भारत- भारती, (६) पलासी-युद्ध, (७) साकेत, (८) रंग में भंग, ( 6 ) विरहिनी व्रजांगना, (१०) पंचवटी, (११) वैतालिक, (१२) शकुंतला, ( ( १३) वक-संहार, (१४) वन-वैभव, (१५) हिंदू आदि। विवरण---उपयुक्त ग्रंथों में साकेत बड़ा जो प्रायः ५०० पृष्ठों में रामायण की कथा का कुछ नए प्रकार से कथन करता है । 'हिंदू' में देश-प्रेम की बहार है। 'भारत-भारती' में भी यही बात है । श्राप देश-प्रेमी कवि हैं, और जातीय प्रथा के राजनीतिक विचार रखते हैं । इनकी रचना संस्कृतपन लिए हुए खड़ी बोली में है। पत्रिकाओं में भी इनके स्फुट पद्य-लेख निकला करते हैं । खड़ी बोली के श्राप परमोत्कृष्ट कवियों में माने जाते हैं, और हिंदी-संसार में आपने अच्छा यश प्राप्त किया है। वास्तव में आपमें अच्छी कवित्व-शक्ति है, और इनकी रचनाओं में चमत्कार पाया जाता है। इतना सब मुक्त कंठ से मानते हुए भी केवल साहित्य की दृष्टि से हमको इनकी बहुतेरी रचनाओं में वर्णन-पूर्णता की कमी समझ पड़ती है । एक भाव उठाकर उसे भली भाँति सुपुष्ट किए बिना ही शाखा-चंक्रमण का-सा दोष दिखलाते हुए आप झट से दूसरे भाव पर कूद जाते हैं, और जब तक वह पुष्ट हो, तब तक अन्य पर जा पहुँचते हैं । मति- राम के वर्णन में भावपुष्टीकरण का जो भारी गुण हमने लिखा है, उसका चमत्कार गुप्तजी बिल्कुल नहीं दिखला पाए हैं। कथा का वर्णन आपने गोस्वामी तुलसीदास की प्रणाली पर न करके श्रीहर्ष की प्रथा पर किया है। फिर भी उनकी-सी भाव-सबलता के अभाव में आपके साकेत में न तो कथां की बहार है, न साहित्यिक छटा की । इन्हीं कारणों से आरोचन की मात्रा आपकी चमकती हुई