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मिश्रबंधु

३७८ मिश्रबंधु-विनोद सं० १९६६ हिंदी-साहित्य के वैज्ञानिक अंग की अच्छी श्री-वृद्धि की है। श्रापका सूर्य-सिद्धांत-विज्ञान भाष्य एक महत्त्व-पूर्ण ग्रंथ प्रतीत होता है। श्रीवास्तवजी का कथन है कि उनका यह ग्रंथ लगभग १००० पृष्ठों में पूरा होगा। समय-समय पर 'विज्ञान' मासिक पत्रिका में श्रापके ज्योतिष-संबंधी लेख निकला करते हैं । इस समय यह गवर्नमेंट हाईस्कूल, रायबरेली में अध्यापक हैं। यदि आजकल के सुलेखक लोग अपने अनुकूल दो-एक विषय चुनकर केवल उन्हीं पर अपनी-अपनी शक्ति लगावे, तथा परिश्रम एवं साधना से काम लेवें, तो समाज का ज्ञान-वन अच्छा हो, हिंदी में स्थायी साहित्य बने, तथा उसकी श्रीवृद्धि भी अच्छी हो। श्रीवास्तव महाशय ऐसे ही अपने अनुकूल विषय पर ही विशेष ध्यान देनेवाले साहित्यिक महापुरुष समझ पड़ते हैं। नाम-(३६३७) सोमेश्वरदत्त शुक्ल बी० ए० । इनका जन्म सं० १६४४ में, सीतापुर में, हुआ । आपने अपने मातामह से उत्तराधिकार में अच्छी संपदा पाई । इतिहास एवं अन्य विषयों के कई अच्छे गद्य-ग्रंथ लिखे हैं। आप विद्या-व्यसनी हैं। छोटे-छोटे कई ग्रंथ बना चुके हैं । कुछ कविता भी की है। इंगलैंड, फ्रांस, जर्मनी के इतिहास तथा सावित्री सत्यवान-नाटक अच्छे हैं। हमारे मित्र भी हैं। समय-संवत् १९७० नाम--(३६३८) इंद्रजो, दिल्ली। जन्म-काल-सं० १६४६ । रचना-काल-लगभग सं० १९७० । ग्रंथ-(१) नेपोलियन बोनापार्ट की जीवनी, (२) प्रिंस बिस्मार्क का जीवन-चरित्र, (३) गैरिबाल्डी, (४) उपनिषदों की भूमिका, (१) संस्कृत-साहित्य का ऐतिहासिक अनुशोधन, (६)