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मिश्रबंधु

सं० १९६७ उत्तर नूतन सरस है सलिल समीर हू ते व्यापक विभूति जाकी, होत अनुभूत पूत पावन मोदकर महत प्रमोदकर पारावार, प्रेम-पय-पूरित पियूप ते सरस नाम-(३६२६) लक्ष्मीप्रसाद मिस्त्री 'रमा'। जन्म-काल-सं० १९४४ । रचना-काल-सं० १६६७ । ग्रंथ-(१) बंधु-वियोग (१९७५), (२) रेवा-माहास्य (१९६८), (३) फाग-संग्रह (१९६८), (४) स्तुति-प्रबंध (१९६८), (५) दृष्टांत-माला (१९६८), (६) चतुर-गवैया (१९६८), (७) कव्वाली गुलबहार (१९६६), (2) श्रीगौपुकार ( १९७०), () प्रभाती-संग्रह (१६७०), (१०) प्रेम-प्रबोध ( १६७५), (११) लावनी चौदह रस कलगी ( १९७५), (१२) काल का चक्र (१६७६ ), (:१३ ) उर्वशी- चरिन (१९७२), (१४) राजकुमारी उपा (१९७३), (१५) स्वर्गागना (१९७४), (१६ ) सती मदालसा ( १६७४), (१७) प्रेमशतक ( १९७४), (१८) लावनी लक्ष्मी-विलाल (१९७५), (१६) महाकवि केशवदास और उनके ग्रंथ (१९७८), (२०) राष्ट्रीय रन ( १९८०)। विवरण --- श्राप ठाकुर अयोध्याप्रसादजी के पुन्न, हटा ज़िला दमोह में निवास करते हैं तथा विश्वकर्मा-बंशज शिल्पकार हैं। आपने विविध विषयों पर अच्छे नथ बनाए हैं। उदाहरण- नाप भ्रमर ने कहा कंज से हे सुखदायी, श्रानंद-कंद ; संध्या-समय आप क्यों मुझको कर लेते हो उर में बंद । उधर अकेली अलिनी मेरी कष्ट अनेकों सहती है .