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मिश्रबंधु

जर नूतन . उदाहरण- चिते चित चाहि प्रभु जित जित हेरथो तहाँ, तेरो ही महान गुन गान गहने परे; जल-थल एको कहूँ खाली न लखात प्रभू, पूरन ससान पीठ बास दहने परे । बागम में, बेलिन में श्रीपति चमेलिन्द में , चंद्र-सूर लोक में प्रतच्छ कहने परे; पहो जगदीश ! तेरी महिमा अपार लत्रि , पंदित सुकवि हूँ को मौन रहने परे । (श्रीपति-शतक से) अलंकार गुण हीन दीन दूधन की पीनी ; छंद छन की छीन छाव छमता की छीनी । भाव-भक्ति-रस अंग भंग नीरस सब भाँती नहिं कवि-कुल श्रादेय हेय दुगुण विख्याती। कवि श्रीपति' जू गांधी-चरित ससि-समान सुषमा रमी होइहिं सज्जन सुखदा सदा कलुपा बुल कविता तमी। (गांधी-गुण-दर्पण से) समय-सं० १६६४ नास--( ३९०१) गंगाप्रसाद उपाध्याय, एम० ए० दया- निवास जीरो रोड, प्रयाग। जन्म-काल-सं० ११३८ । रचना-काल-सं० १९६४ । अंथ-~(१) शेक्सपियर ( छ भागों में समालोचनात्मक भूमि- कायों-सहित ग्रंथ), (२) पशु-पक्षी-वृत्तांत (चौदह भागों में ), (३) आँगरेज़ जाति का इतिहास, (४) विधवा-विवाह-मीमांसा, (५) श्रार्य-समाज, (६) शास्तिकवाद, (७) श्रीशंकराचार्य- G ।